Illegal Foreigners In India: सुप्रीम कोर्ट ने भारत में अवैध रूप से रह रहे विदेशियों के लिए एक बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि 'यह देश हर तरह के लोगों के लिए स्वर्ग बन गया है. कोई भी आता है और यहीं रुक जाता है.' दरअसल यह टिप्पणी गोवा में एक रूसी नागरिक के साथ रह रहे एक इजरायली व्यक्ति से संबंधित एक याचिका की सुनवाई के दौरान की गई. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इजरायली व्यक्ति की दो नाबालिक बेटियों को रूस वापस भेजने से रोकने की मांग वाली याचिका को प्रचार पाने का एक तुच्छ प्रयास बताया. साथ ही पीठ ने इस याचिका को खारिज भी कर दिया. इसी बीच आइए जानते हैं कि भारत में अवैध रूप से कितने विदेशी रह रहे हैं.

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भारत में अवैध विदेशियों की संख्या 

इस पूरे मामले से एक यह सवाल उठा है कि आखिर भारत में कितने विदेशी अवैध रूप से रह रहे हैं. संसद में प्रस्तुत अनुमानों के मुताबिक 2016 में लगभग 2 करोड़ बांग्लादेश भारत में अवैध रूप से रह रहे थे. 2004 में यह संख्या 1.2 करोड़ थी. आपको बता दें कि बांग्लादेशियों के अलावा अवैध रोहिंग्या प्रवासियों की संख्या लगभग 75000 है. इनमें से 22000 यूएनएचसीआर में पंजीकृत हैं. इसके अलावा अगर जनवरी 2022 के आंकड़ों की बात करें तो यूएनएचसीआर के मुताबिक भारत में 46000 से ज्यादा पंजीकृत शरणार्थी और शरण चाहने वाले हैं. इनमें से ज्यादातर म्यांमार और अफगानिस्तान से हैं.

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क्या है पूरा मामला 

दरअसल यह विशेष याचिका इजरायली नागरिक ड्रोर श्लोमी गोल्डस्टीन ने दायर की थी. इस याचिका में दो नाबालिक लड़कियों की कस्टडी का दावा किया गया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर विचार करने से मना कर दिया था और कहा था कि भारत को अनिश्चित काल तक रहने की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए स्थायी घर नहीं बनाया जा सकता. 

कहां से शुरू हुआ यह मामला 

जुलाई में 40 साल की रूसी महिला नीना कुटीना और उनकी 6 और 5 साल की दो बेटियां अवैध यात्रा करके बिना किसी निवास दस्तावेजों के कर्नाटक के जंगल की गुफा में रहती हुई पाई गई थी. स्थानीय पुलिस ने उन्हें कई हफ्ते बाद बचाया था. इसके बाद उन्हें एक फॉरेनर्स डिटेंशन सेंटर भी भेज दिया गया था. इसी के साथ कर्नाटक उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को उन्हें वापस भेजने के लिए यात्रा दस्तावेज जारी करने के निर्देश दिए थे.

गोल्डस्टीन ने पहले बच्चों की कस्टडी की मांग की थी और उनके निर्वाचन को रोकने के लिए कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की थी. उस याचिका में उसने दावा किया था कि वह उनकी देखभाल कर रहा है. लेकिन उच्च न्यायालय ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया था और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा.

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