Kissing in Relationship: चूमना प्यार जाहिर करने के सुंदरतम एहसास में से एक है. चूमने का पहला लिखित साक्ष्य भारत के वैदिक संस्कत साहित्य में मिलता है. किसिंग पर रिसर्च करते हुए जाने माने एंथ्रोपोलॉजिस्ट विलियम जेनकोविक ने पाया कि मौजूदा वक्त में 168 ज्ञात संस्कृतियों में से 46% में लिप-टू-लिप किसिंग का चलन है, बाकी जगहों में कहीं हाथ, कहीं सिर को चूमकर या बोसा यानी चूम कर लेकर यह रवायत पूरी की जाती है. 

किसिंग को अगर हम सिर्फ रोमांटिक नजरिए से समझने की कोशिश करेंगे तो ये जानकारी का धोखा होगा दरअसल किसिंग अपने अंदर कई ऐसे साइंटिफिक राज छिपाए हुए है जिस पर से आज हम पर्दा उठाएंगे साथ ही जानेंगे कि कैसे चबाकर खाना खिलाने से किसिंग की शुरुआत हुई. 

कैसे हुई चूमने की शुरुआतकिसिंग का पहला इतिहास तकरीबन 3500 साल पहले भारत में मिलता है. जिसके बाद दुनिया भर की संस्कृतियों में भी किसिंग का चलन बढ़ना शुरू हुआ. इसकी शुरुआत मुंह में चबाया हुआ खाना देने से हुई थी. 

रोमांस का चिह्न बन चुका चुंबन शुरूआत में केवल मातृत्व बोध से जुड़ा हुआ था. दरअसल, आदिमानवों के वक्त में जब आग जलाने के साधन मौजूद नहीं थे, तब मांएं कच्चा मांस या सब्जियां चबातीं और उन्हें अपने बच्चों को मुंह में डाल देतीं, ताकि वो आराम से खा सकें. यह ठीक वैसे ही होता, जैसे चिड़िया अपने बच्चे को चोंच से खिलाती है. यह स्वभाव हमारे पूर्वज बंदरों से ही इंसानों में आ गया यही कारण है कि किसी बच्चे को किसिंग सीखना नहीं पड़ता.मां के करीब आते ही वह उसे अपने होंठों से चूमने की कोशिश करता है. क्योंकि उसके DNA में यह बात कोडेड है कि चूमने से खाना, प्यार और सुरक्षा मिलती है. 

चूमने के व्यवहार का विकाससमय और विकास के साथ इंसान ने अपने आदिम गुण छोड़ दिए. जिसके साथ इंसानों में शिकार करने, देखने और सूंघने की क्षमता कम होती चली गई. जैसे जानवर एक दूसरे की भावना को निश्चित दूरी से सूंघकर ही पता कर लेते हैं, वैसे ही इंसानों को लिप-लॉक की जरूरत पड़ी. क्योंकि इवोल्यूशन के दौरान हम इंसानों की सूंघने की शक्ति कम होती गई. 

आसान भाषा में समझें तो जिन भावनाओं को जानवर सूंघकर या तरंगों के जरिए मालूम कर लेते हैं, उन्हीं भावनाओं को समझने के लिए इंसानों को चुंबन जितना नजदीक आने की जरूरत पड़ती है. 

होंठ से USB की तरह होता है इमोशन का ट्रांसफर मेल मिलाप के लिए लोग हाथ मिलाते या गले भी मिलते हैं लेकिन किस करने में  ऐसा क्या है जो ये इंसान के लिए इतना स्पेशल हो जाता है. इसका जवाब भी होठों की बनावट में ही छिपा है. किसी भी अंग के मुकाबले सबसे ज्यादा नर्व न्यूरॉन्स होंठ पर ही होते हैं. इस वजह से होंठ हमारे शरीर का सबसे नाजुक और संवेदनशील अंग बन जाता है. जैसे ही किसिंग प्रॉसेस की शुरुआत होती है, होंठ में मौजूद नर्व न्यूरॉन्स गंध, स्पर्श और स्वाद के माध्यम से दिमाग को मैसेज भेजने लगते हैं.

किसिंग के दौरान दो लोगों के बीच में जटिल सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है. पांचों सेंस आर्गन आंख,नाक,कान,जीभ और स्किन डेटा के जरिए माइंड को  सूचना भेजते रहते हैं कि वो क्या वो व्यक्ति फ्यूचर में भरोसेमंद पार्टनर बन सकता है या नहीं. उसके पास आपको कितना सेफ और बेहतर फील होता है वगैरह. 

लोगों को भले पता न चले, लेकिन किसिंग के दौरान दो दिल और दिमाग आपस में USB की तरह डाटा ट्रांसफर कर रहे होते हैं. 

किस के टाइप 

1. पेक किसये किस करने का सबसे शुरुआती और सामान्य तरीका है. इसमें दो लोग एक दूसरे का होंठ छूकर किस करते हैं. ये ज्यादा लंबा नहीं होता. प्यार या ग्रीटिंग के लिए इस तरह का किस करते हैं. 

2. अमेरिकन किसपेक किस जब देर तक चले तो ये अमेरिकन किस होगा. रोमांटिक पार्टनर रिश्ते की  शुरुआत में अकसर ऐसा करते हैं. 

3. फ्रेंच किस

यह डीप किसिंग होती है. इसमें होंठ के साथ-साथ जीभ और दांत भी शामिल होता है. ये ज्यादा रोमांटिक और सेक्शुअल अपील वाली किसिंग है. 

बटरफ्लाई किसइस तरह के किस में बटरफ्लाई इंवॉल्व नहीं होता. इसमें एक दूसरे के चेहरे को इतना करीब ले आते हैं कि पलकें आपस में टकराने लगती हैं. बच्चों को दुलराने या रोमांटिक पार्टनर से कडलिंग करने में ऐसी किसिंग की जाती है. 

ये भी पढ़ें - Kiss Day: 'किस' करने से प्यार और खुशी के अलावा मिलते हैं गज़ब के फायदे, इम्यूनिटी भी होगी मजबूत