देश में इन दिनों बिहार चुनाव की धूम है. हर तरफ लोग बस एक ही बात कर रहे हैं कि इस बार इतिहास दोहराया जाएगा या फिर सरकार करवट ले लेगी. बहरहाल ये तो 14 नवंबर को चुनावी नतीजों के बाद ही पता लगेगा, लेकिन चुनावी रिजल्ट से पहले एक पोल जरूर लोगों के सामने आता है जिसे एग्जिट पोल कहते हैं. इसमें सरकार बनने का अनुमान लगाया जाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसे कराने में खर्च कितना आता है और इसे कैसे कराया जाता है. चलिए आज आपको विस्तार से बताते हैं कि एग्जिट पोल कैसे होता है और इसे कराने में खर्च कितना आता है.

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कैसे होता है एग्जिट पोल, कहां से लाया जाता है अनुमान

आपको बता दें कि एग्जिट पोल हमेशा मतदान वाले दिन होता है और मतदान के खत्म होने के बाद ही इसे टीवी और अखबारों में दिखाया जाता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब मतदाता वोट डालकर बाहर निकलता है तो उससे कई तरह के सवाल पूछे जाते हैं जो उनके मन को टटोलने की कोशिश के लिए होते हैं कि मतदाता किस पार्टी को सपोर्ट कर रहा है और अपना वोट किसे देकर आया है.

ये सर्वे उन हजारों लाखों लोगों पर किया जाता है जो वोट डालकर बाहर निकलते हैं. वोटिंग वाले दिन जुटाए गए यह आंकड़े विश्लेषण करने के बाद मतदान के आखिरी दिन शाम के वक्त टीवी पर दिखाए जाते हैं. हालांकि ये जरूरी नहीं कि एग्जिट पोल हमेशा ही सही साबित हो. कई बार एग्जिट पोल गलत भी साबित होता है और नतीजे अनुमान के उलट आते हैं.

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एग्जिट पोल कराने में कितना आता है खर्च

आपको बता दें कि एग्जिट पोल का पूरा खर्च सैंपल साइज पर डिपेंड करता है. यानी जितना बड़ा सैंपल साइज उतना ज्यादा खर्च. सैंपल साइज लोगों की संख्या से तय होता है कि कितने लोगों पर इसे कराना है. मानकर चलिए अगर एजेंसी 70 हजार लोगों पर एग्जिट पोल करती है तो इसमें 2.5 से 3 करोड़ का खर्च आता है. अगर यही आंकड़ा लाखों लोगों पर जाता है तो खर्च 5 से 10 करोड़ भी हो सकता है. हालांकि यह खर्च का एक अनुमान है.

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