How Tongue Tastes: इस पृथ्वी पर केवल इंसानों के पास ही विभिन्न चीजों को अच्छे और बुरे की भावना के साथ समझने की क्षमता है. हमारे पास ठंडा-गर्म, मीठा-खट्टा, अच्छा-बुरा, सुखद और दुखद जैसी संवेदनाओं का अनुभव करने के लिए पांच संवेदी अंग हैं, अर्थात् जीभ, आंख, नाक, कान और त्वचा. इनमें से अगर जीभ की बात करें, तो इसकी कार्यप्रणाली काफी दिलचस्प है. जीभ से हमें खाने के स्वाद का पता चलता है लेकिन क्या आपने कभी गौर की है कि किसी चीज का कड़वा स्वाद हमें थोड़ी देर बाद पता चलता है. जैसे; खीरे को थोड़ी देर चबाने के बाद हमें मालूम पड़ता है कि वो कड़वा है.


जीभ में होती है स्वाद कलिकाएं 


जीभ मुख्य रूप से मीठा, कड़वा, खट्टा और नमकीन... इन चार प्रकार के स्वादों की पहचान करती है. हमारी जीभ पीछे से चौड़ी और आगे से संकरी सी होती है, जो मांसपेशियों के ऊतकों से बनी होती है और इसकी ऊपरी सतह पर कुछ छोटे उभार होते हैं जिन्हें स्वाद कलिकाएं कहा जाता है. ये स्वाद कलिकाएं चार अलग-अलग प्रकार की होती हैं, जो हमें उन्ही चार प्रकार के स्वादों के बारे में सूचित करती हैं.




किस स्वाद का पता कहां से चलता है?


जब हम कुछ खाते हैं तो हमें उस पदार्थ का स्वाद तब महसूस होता है जब वह पदार्थ हमारी लार में घुलकर जीभ पर फैलता है.  हम अपनी जीभ के अगले भाग के आधार पर यह पहचान सकते हैं कि कोई वस्तु मीठी है या नमकीन. वहीं, जीभ का पिछला हिस्सा कड़वा स्वाद पहचानता है, जबकि जीभ के किनारे खट्टे स्वाद का एहसास कराते हैं. इसीलिए जब हम कुछ खट्टा खाते हैं तो गले के पिछले हिस्से में खट्टापन महसूस होता है और कभी-कभी हमारे दांत इतने खट्टे हो जाते हैं कि हम उनके साथ कुछ खा भी नहीं पाते.


कड़वा स्वाद थोड़ी देर से क्यों पता चलता है?


खास बात यह है कि स्वाद कलिकाएं आमतौर पर मानव जीभ के मध्य भाग में मौजूद नहीं होती हैं, यही कारण है कि हम इस क्षेत्र के माध्यम से किसी भी स्वाद का अनुभव नहीं करते हैं. वहीं, कड़वे स्वाद की पहचान करने वाला हिस्सा जीभ के सबसे अंत में यानी मुंह के काफी भीतर होता है, इसलिए इस स्वाद का पता थोड़ी देर से चलता है.


स्वाद कैसे पहचाना जाता है?


हम किसी वस्तु के स्वाद को तब पहचानते हैं जब हम उसे अपने दांतों से चबाते हैं और पदार्थ का एक हिस्सा हमारी लार में घुल जाता है, जिससे स्वाद कलिकाएं सक्रिय हो जाती हैं.  खाद्य पदार्थ भी एक रासायनिक प्रतिक्रिया से गुजरते हैं जो तंत्रिका आवेगों को उत्तेजित करता है. ये आवेग तंत्रिका तंत्र के माध्यम से मस्तिष्क के स्वाद केंद्रों तक पहुंचते हैं और हमें स्वाद का एहसास होता है.


कब स्वाद नहीं पहचान में आता?


ऐसा नहीं है कि मनुष्य को हर परिस्थिति में ही स्वाद का अनुभव होता है. जब किसी व्यक्ति को बुखार होता है या वह अत्यधिक ठंडा या गर्म भोजन खाता है, तो उसकी स्वाद कलिकाएं निष्क्रिय या सुस्त हो जाती हैं और उसे स्वाद का पता नहीं चल पाता है. इसके अलावा, पेट खराब, कब्ज या जीभ पर गंदगी जमा होने पर भी स्वाद का पता नहीं चल पाता है.


बुढ़ापे में निष्क्रिय हो जाती हैं स्वाद कलिकाएं 


एक वयस्क इंसान की जीभ में लगभग 9,000 स्वाद कलिकाए होती हैं. शरीर की अन्य कोशिकाओं की तरह, स्वाद कलिकाएं भी बिगड़ती और पुनर्जीवित होती हैं. लगभग हर 10 दिन में, नई स्वाद कलिकाएं पुरानी स्वाद कलिकाओं का स्थान ले लेती हैं. उम्र बढ़ने के कारण ये स्वाद कलिकाएं कम संवेदनशील होने लगती हैं और बुढ़ापे में ये निष्क्रिय हो जाती हैं.


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