Arya Samaj Marriage Law: आर्य समाज को डेढ़ सौ साल हो चुके हैं. 31 अक्टूबर को दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभा को संबोधित किया और सामाजिक सुधार एवं शिक्षा में इसके योगदान की सराहना की. इसी बीच आइए जानते हैं कि आर्य समाज में होने वाली शादियों को कानूनी मान्यता कैसे मिलती है और क्या बाकी धर्म के लोग भी इसके रीति रिवाज के तहत विवाह कर सकते हैं.

Continues below advertisement

आर्य समाज में विवाह को कानूनी मान्यता कैसे मिलती है 

आर्य समाज में शादी पारंपरिक वैदिक रीति-रिवाजों का पालन करती है. लेकिन आर्य समाज द्वारा जारी प्रमाण पत्र पूरी तरह से कानूनी वैधता को प्रदान नहीं करता है. इसके लिए भारतीय कानून के तहत सरकारी पंजीकरण जरूरी है. 

Continues below advertisement

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के मुताबिक आर्य समाज में संपन्न विवाह तभी वैध माना जाता है जब दोनों साथी हिंदू ,बौद्ध, जैन या फिर सिख धर्म के हों. वैदिक रीति रिवाजों के मुताबिक विवाह संपन्न होने के बाद जोड़े को कानूनी मान्यता को प्राप्त करने के लिए विवाह रजिस्ट्रार के पास अपनी शादी को पंजीकृत कराना होगा. 

कानूनी स्थिति के लिए पंजीकरण जरूरी है 

हालांकि आर्य समाज विवाह समारोह के बाद एक प्रमाण पत्र देता है लेकिन अदालतों ने यह साफ कहा है कि यह सरकारी पंजीकरण का स्थान नहीं ले सकता. नगर पालिका प्राधिकरण या फिर जिला रजिस्ट्रार के पास विवाह पंजीकृत होने के बाद ही इसे पूरी तरह से कानूनी दर्जा प्राप्त होता है. इसके बिना शादी को पासपोर्ट, वीजा या फिर उत्तराधिकार के दावों जैसे कानूनी दस्तावेजों में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

आर्य विवाह मान्यता अधिनियम 1937 

आर्य विवाह मान्यता अधिनियम 1937 को आर्य समाज के अंतर्गत की गई अंतर्जातीय शादी को मान्यता देने के लिए बनाया गया था. लेकिन आधुनिक संदर्भ में सिर्फ यह अधिनियम पर्याप्त नहीं है. आज के कानूनी ढांचे के अंतर्गत पूरी तरह से कानूनी वैधता के लिए सरकारी पंजीकरण जरूरी है.

अलग-अलग धर्म के लोगों के बीच विवाह 

आर्य समाज अंतर धार्मिक विवाहों की अनुमति देता है लेकिन इसकी भी कुछ शर्ते हैं. अगर कोई एक साथी हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख नहीं है तो शादी से पहले उन्हें शुद्धि समारोह के जरिए से हिंदू धर्म अपनाना होगा. धर्म परिवर्तन के बाद ही आर्य समाज वैदिक रीति से विवाह को पूरा करा सकता है. 

धर्म परिवर्तन और शुद्धिकरण प्रक्रिया 

आर्य समाज में धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया काफी प्रतीकात्मक होती है. इसमें वैदिक सिद्धांतों का पालन करने और मूर्ति पूजा को अस्वीकार करने की शपथ लेना शामिल होता है. इस पूरी प्रक्रिया को दर्ज किया जाता है और व्यक्ति को धर्म परिवर्तन का प्रमाण पत्र दिया जाता है. 

विशेष विवाह अधिनियम 1954 

जो जोड़े अपने मूल धर्म को बनाए रखना चाहते हैं उनके लिए भी एक विकल्प है. यह विकल्प है विशेष विवाह अधिनियम 1954. इसके तहत अलग-अलग धर्म के लोगों को बिना धर्म परिवर्तन के शादी करने की अनुमति मिलती है. इसके लिए रजिस्ट्रार कार्यालय में 30 दिन की सार्वजनिक सूचना की जरूरत होती है. इसके बाद शादी को पंजीकृत कर दिया जाता है और राज्य द्वारा कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त हो जाती है.

ये भी पढ़ें: 8वां वेतन आयोग लागू होते ही '0' क्यों हो जाता है महंगाई भत्ता, ये बात नहीं जानते होंगे आप?