भारत के राष्ट्रपति गणराज्य के राष्ट्रप्रमुख होते हैं. वह देश के पहले नागरिक के साथ-साथ भारतीय सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर होते हैं. द्रौपदी मुर्मू इस वक्त देश की 15वें राष्ट्रपति हैं. भारत का संविधान राष्ट्रपति को उनके अधिकारों का इस्तेमाल करने की शक्ति देता है. लेकिन क्या ऐसा भी है कि राष्ट्रपति अपने पद पर रहते हुए कोई भी असंवैधानिक काम करे और उस पर कोई कार्रवाई नहीं होगी. अगर राष्ट्रपति के खिलाफ कोई मामला दर्ज करना हो तो फिर वो कैसे होगा और किसके पास ऐसा करने की ताकत है. आइए आपको इन सभी सवालों के जवाब देते हैं.
कैसे दर्ज हो सकता है मामला?
सबसे पहला सवाल तो यह है कि राष्ट्रपति के खिलाफ मामला कैसे दर्ज हो सकता है? इसके लिए बता दें कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 361 के तहत उनके कार्यकाल के दौरान न तो मामला दर्ज हो सकता है और न ही उनको गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. भारत का संविधान ऐसा करने की अनुमति नहीं देता है. फिर सवाल यह हो सकता है कि अगर राष्ट्रपति किसी घोटाले या किसी अन्य क्राइम में शामिल हों तो? सबसे पहले तो राष्ट्रपति किसी घोटाले या फिर क्राइम में शामिल नहीं हो सकते हैं, अपवाद अलग बात है. दरअसल घोटाला जैसी चीजें तब तक संभव नहीं हैं जब तक उनके पास पूरी तरह से वित्तीय शक्तियों का संचालन हो.
तो क्या जुर्म करके बच सकते हैं राष्ट्रपति
तो क्या राष्ट्रपति अपराधी हो सकते हैं और संविधान के नियमों का उल्लंघन कर सकते हैं? ऐसा बिल्कुल नहीं है. पहली बात तो राष्ट्रपति अपराधी नहीं हो सकते हैं और अगर ऐसा होता भी है तो उनके संविधान का नियम तोड़ने पर भी सीधा गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है और न ही सीधा मुकदमा दर्ज किया जा सकता है. तो क्या जुर्म करने के बाद भी राष्ट्रपति बच सकते हैं? नहीं, इसके लिए सबसे पहले राष्ट्रपति के ऊपर महाभियोग चलाकर उनको राष्ट्रपति के पद से निष्कासित किया जा सकता है. इसके बाद उनके ऊपर मुकदमा चलाकर उनको गिरफ्तार किया जा सकता है, और महाभियोग विधायिका से संबंधित एक कार्यवाही है.
पद पर रहते हुए आपराधिक कार्यवाही से मुक्त होते हैं राष्ट्रपति
देश में राष्ट्रपति और राज्यपाल अपने पद पर बने रहते हुए किसी भी तरह की आपराधिक कार्यवाही से मुक्त होते हैं इस पद पर रहते हुए उनकी गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है. कोई भी कार्यवाही तभी शुरू की जा सकती है, जब उन्होंने अपना पद छोड़ दिया हो. लेकिन इस दौरान राष्ट्रपति के आचरण की समीक्षा किसी न्यायालय, अधिकरण या निकाय द्वारा की जा सकेगी, जिसे अनुच्छेद 61 के अधीन किसी आरोप के अन्वेषण के लिए संसद के किसी सदन द्वारा नियुक्त किया गया हो.
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