दुनिया में एडॉल्फ हिटलर को कौन नहीं जानता है. हिटलर को तानाशाह भी कहा जाता था. लेकिन आज हम हिटलर के उस सपने के बारे में बताने वाले हैं, जो अधूरा रह गया था. दरअसल दूसरे विश्व युद्ध से पहले एडोल्फ हिटलर ने सैनिकों के लिए एक हॉलीडे कैंप बनवाने की योजना बनाई थी. जर्मनी के बाल्टिक सागर के रुगेन द्वीप पर हिटलर के आदेश पर बने इस होटल को कोलोसस ऑफ प्रोरा के नाम से जाना जाता है. आज हम आपको बताएंगे कि दुनिया के सबसे बड़े बनने वाले होटल की क्या स्थिति है. 


हिटलर का सपना


हिटलर ने होटल बनाने के लिए नाजी वास्तुविद को डिजाइन तैयार करने के लिए कहा था. नाजी वास्तुविद ने साल 1930 में इस होटल का डिजाइन तैयार किया था. इस होटल में 20,000 कमरे बनने थे. जानकारी के मुताबिक लगभग नौ हजार मजदूरों ने लगातार काम करते हुए इमारत तैयार की थी. लेकिन उसी समय दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ गया था. बता दें कि लगभग पांच किमी के दायरे में फैले इस आइलैंड को तैयार करवाने का जिम्मा नाजी संस्था ने लिया था. इतिहासकार बताते हैं कि इस होटल को तैयार करवाने के पीछे हिटलर का मकसद था कि जर्मन लोग खासकर सैनिक काम के बाद मौज-मस्ती करते हुए यहां पर वक्त बिता सके. होटल को प्रोरा नाम दिया गया, जिसका अर्थ है बंजर जमीन है. ये नाम इसलिए मिला क्योंकि होटल को समुद्र के बीच रेतीली जगह पर बनाया गया था. 


करोड़ों की लागत


होटल के निर्माण में लगभग नौ हजार मजदूरों को लगाया गया था, इन मजदूरों ने दिन-रात काम किया था. जानकारी के मुताबिक इस होटल को बनाने के लिए साल 1936 से 1939 तक लगातार काम चल रहा था. इस प्रोजेक्ट में उस समय 237.5 मिलियन जर्मन करेंसी लगी थी. आज के समय में यह लागत लगभग 899 मिलियन यूएस डॉलर के बराबर होगी. इसके आठ हाउसिंग ब्लॉक, थिएटर और सिनेमा हॉल बनकर तैयार हो गए थे. लेकिन जब स्विमिंग पूल और फेस्टिवल हॉल का काम शुरू होने वाला था, उसी वक्त दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया थी और 1939 में काम रुक गया. इसके अलावा सभी मजदूरों को सेना में भेज दिया गया था.


दुनिया का सबसे बड़ा होटल 


जानकारी के मुताबिक हिटलर प्रोरा को दुनिया का सबसे बड़ा होटल बनाना चाहता था. वह चाहता था कि ऐसा विशालकाय रिजॉर्ट बनाया जाए, जो दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा रिजॉर्ट बने. उसकी योजना 20,000 बेडरूम वाला होटल बनाने की थी. हर कमरे का रुख समुद्र की ओर रखने का प्लान था. इतना ही नहीं हर रूम का आकार 5 गुणा 2.5 मीटर होना था, जिसमें दो बेड,एक वार्डरोब और एक सिंक बनना था. काम्पलेक्स के बीच में एक विशालकाय भवन बनाने की भी योजना थी, जिसे जरूरत पड़ने पर युद्ध के समय में सैन्य अस्पताल में बदला जा सके.


दूसरा विश्व युद्ध


दूसरा विश्व युद्ध के बाद होटल का काम फिर कभी शुरू नहीं हुआ. बाद में होटल की अधबनी इमारतों का इस्तेमाल सैनिकों ने बैरक की तरह किया था. जानकारी के मुताबिक पहले सोवियत ऑर्मी के सैनिक यहां छिपे थे, जिनके बाद नेशनल पीपल्स ऑर्मी और उनके बाद युनिफाइड आर्म्ड फोर्स ऑफ जर्मनी के सैनिक यहां पर रहे थे. बमबारी के समय सैनिकों के अलावा आम लोग भी यहां छिपने के लिए आया करते थे. इसी दौरान ये चममचाती इमारत बुरी तरह से टूट फूटकर खंडहर में बदलने लगी थी.


सैन्य चौकी 


युद्ध के बाद प्रोरा का इस्तेमाल पूर्वी जर्मनी की सेना के लिए सैन्य चौकी के तौर पर किया जाता था. 1990 में जर्मनी के एकीकरण के बाद इसके कुछ हिस्से का इस्तेमाल मिलिट्री टेक्निकल स्कूल के तौर पर भी किया गया था. इसके बाद फिर बाल्कन के शरणार्थी भी यहां आकर ठहरे थे. खंडहर हो चुके हिस्सों को छोड़कर होटल का बाकी हिस्सा अब भी सुंदर लगता है.


कभी नहीं बिक पाया होटल


कहा जाता है कि हिटलर के सपनों का होटल कई बार बेचने की कोशिश की गई थी. लेकिन ये कोशिश कभी भी पूरी नहीं हो पाई थी. लोगों का मानना था कि लड़ाई के समय यहां बहुत सी जानें गई होंगी, इसलिए ये जगह भुतहा भी हो सकती है. हालांकि काफी समय बाद साल 2004 के बाद इस होटल के अलग-अलग हिस्सों को बेचने में सफलता मिलने लगी थी. हर हिस्से के खरीदार ने अपनी खरीदी जगह का इस्तेमाल अपनी तरह से किया है. अब यह 20 हजार लोगों के ठहरने के लिए होटल तो नहीं बचा है, लेकिन एक हिस्से में दुनिया का सबसे बड़ा हॉस्टल बना हुआ है, जिसे ब्लॉक फोर के नाम से जाना जाता है.


 


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