Pakistan Gallantry Award: भारत में सैन्यकर्मियों को उनकी असाधारण बहादुरी के लिए वीरता पुरस्कार दिया जाता है. दुश्मनों के सामने जवानों को अदम्य साहस दिखाने के लिए उनको परमवीर चक्र से सम्मानित किया जाता है. यह भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान है, जो कि सैन्य सेवा से जुड़े हुए लोगों को दिया जाता है. इसकी शुरुआत 26 जनवरी 1950 में हुई थी. इसको मरणोपरांत भी दिया जाता है. देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न के बाद इसको सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार में से एक माना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में इसी तरह का कौन सा सम्मान सर्वोच्च होता है, जो कि वहां से सेना के जवानों को दिया जाता है. चलिए इस बारे में थोड़ी जानकारी लेते हैं. 

पाकिस्तान में क्या है सेना का सर्वोच्च सम्मान

पाकिस्तान का सर्वोच्च सैन्य वीरता पुरस्कार का नाम निशान-ए-हैदर है. इसको सिर्फ सशस्त्र बलों को दिया जाता है. यह जमीन, हवा और समुद्र में दुश्मनों का सामना करने के लिए उनकी असाधारण बहादुरी के लिए दिया जाता है. हालांकि 1947 में पाकिस्तान के आजाद होने के बाद से अब तक इसे सिर्फ 11 बार ही दिया गया है. आज तक निशान-ए-हैदर प्राप्त करने वाले ग्यारह लोगों में से दस जवान थल सेना से और एक वायु सेना से है. हालांकि इसे अब तक केवल मरणोपरांत ही दिया जाता रहा है. 

जब एक समय पर पाकिस्तान के सेना प्रमुख से पूछा गया कि इसे केवल मरणोपरांत ही क्यों दिया जाता है, तो उन्होंने कथित तौर पर जवाब दिया कि अगर यह किसी जीवित व्यक्ति को दिया जाता है तो वह भविष्य में अपमानजनक आचरण में शामिल हो सकता है, जिससे पुरस्कार का अपमान हो सकता है.

क्यों चर्चा में है पाकिस्तानी सेना सर्वोच्च सम्मान

पाकिस्तानी सेना सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-हैदर 26/11 आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर राणा के कारण चर्चा में आया है. आतंकी हमले का आरोपी तहव्वुर राणा चाहता था कि इस हमले को अंजाम देने वाले लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों को निशान-ए-हैदर से सम्मानित किया जाए. इस आतंकी हमले के साजिशकर्ताओं में एक अमेरिकी नागरिक डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाऊद गिलानी का करीबी सहयोगी है. अमेरिकी न्याय विभाग ने इस दोनों की बातचीत का कुछ हिस्सा जारी किया है. उसके मुताबिक राणा ने हेडली से कहा था कि भारयीत इसके लायक थे. राणा ने कथित तौर पर एक इंटरसेप्टेड बातचीत में हेडली से कहा था कि हमले में मारे गए 9 लश्कर के आतंकियों को ‘निशान-ए-हैदर’ दिया जाना चाहिए.

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