भारत में लोकसभा चुनाव 2024 के लिए जहां एक तरफ सभी राजनीतिक पार्टियां तैयारी में हैं. वहीं चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए लगभग सभी तैयारियां पूरी कर चुका है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजाद भारत में जब पहली बार चुनाव हुआ था, उस वक्त पार्टियों को कैसे चुनाव चिन्ह दिया गया था. आखिर उस वक्त कांग्रेस किस चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ी थी. आज हम आपको चुनाव चिन्ह से जुड़े इतिहास के बारे में बताएंगे.
 


चुनाव चिन्ह


राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ यानी पंजा है. लेकिन 1951 में हुए देश के पहले लोकसभा चुनाव में इस पार्टी चुनाव चिन्ह कुछ और ही था. जानकारी के मुताबिक एक समय पर तो कांग्रेस के पास अपना चुनावी चिन्ह हाथी या साइकिल में बदलने का विकल्प भी था. वहीं कमल से पहले भाजपा का सिंबल क्या हुआ करता था.


दो बैलों की जोड़ी 


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी)  देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल है. इसकी स्थापना 1885 में हुई थी. जब 1951-1952 में देश का पहला आम चुनाव हुआ था, उस वक्त जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस दो बैलों की जोड़ी के चुनाव चिन्ह पर वोट मांगा करती थी. यह सिंबल आम लोगों और किसानों के बीच तालमेल बनाने में सफल हुआ था. इसके बाद करीब दो दशक तक कांग्रेस पार्टी इसी चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरती थी. लेकिन 1970-71 में कांग्रेस में विभाजन हो गया था. इसलिए दो बैलों की जोड़ी वाला चिह्न चुनाव आयोग ने जब्त कर लिया था. उस वक्त कामराज के नेतृत्व वाली पुरानी कांग्रेस को तिरंगे में चरखा देकर और इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली नई कांग्रेस पार्टी को गाय और बछड़े का चिन्ह देकर विवाद का निपटारा हुआ था. हालांकि एक दशक के अंदर ही कांग्रेस पार्टी में चिन्ह पर फिर विवाद छिड़ गया था.


आपातकाल खत्म


इसके बाद साल 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद इंदिरा गांधी के दौर में कांग्रेस की लोकप्रियता में काफी गिरावट आई थी. इसी दौर में चुनाव आयोग ने गाय और बछड़े के चिन्ह को भी जब्त कर लिया था. उस वक्त कांग्रेस एक मुश्किल दौर से गुजर रही थी. कहा जाता है कि उस वक्त इंदिरा गांधी तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती का आशीर्वाद लेने पहुंची. उस समय इंदिरा गांधी की बातें सुनने के बाद शंकराचार्य मौन हो गए थे. वहीं कुछ देर बाद उन्होंने अपना दाहिना हाथ उठाकर आर्शीवाद दिया था. कहा जाता है कि कांग्रेस के वर्तमान चुनाव चिन्ह की कहानी यहीं से शुरू हुई थी.


चुनाव चिन्ह में विकल्प


1979 में कांग्रेस के एक और विभाजन के बाद इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आई) की स्थापना की थी. उन्होंने बूटा सिंह को चुनाव सिंबल फाइनल कराने के लिए चुनाव आयोग के कार्यालय भेजा था. वहां चुनाव आयोग ने कांग्रेस (आई) के चुनाव चिन्ह के रूप में हाथी, साइकिल और खुली हथेली का विकल्प दिया था. इंदिरा गांधी ने पार्टी नेता आरके राजारत्नम के कहने और शंकराचार्य के आशीर्वाद वाले विचार को ध्यान में रखकर पंजा को चुनाव चिन्ह बनाने का निर्णय किया था. इस नए चुनाव चिन्ह के साथ चुनावों में कांग्रेस को बड़ी जीत हासिल हुई थी. उस वक्त इस चिन्ह को पार्टी के लिए गुडलक समझा जाने लगा था, उस वक्त से अभी तक कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार इसी चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरते हैं.


हाथी और साईकिल


1984 में नेता कांशीराम ने बसपा यानी बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था और हाथी को राजनीतिक पार्टी का चिन्ह बनाया था. वहीं मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी बनाई और उनका चुनावी चिन्ह साइकिल था. 


बीजेपी


देश में पहले आम चुनाव के समय बीजेपी ऑल इंडिया भारतीय जनसंघ थी. उस वक्त जनसंघ का चुनाव चिन्ह जलता हुआ दीपक था. उस चुनाव में एक और पार्टी थी किसान मजदूर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जिसका चुनावी निशान झोपड़ी था. वहीं साल 1977 के चुनाव में यही झोपड़ी निशाल वाली प्रजा पार्टी का विलय दीपक चिह्न वाले जनसंघ और चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाले भारतीय क्रांति दल में हो गया था. इसके बाद जनता पार्टी नाम की एक नई पार्टी अस्तित्व में आई थी और इस पार्टी का चुनाव चिह्न कंधे पर हल लिए हुआ किसान था. हालांकि ये संगठन ज्यादा समय तक नहीं चल पाया था. 1980 में जनता पार्टी के बिखरने के बाद पूर्ववर्ती जनसंघ के नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया था, जिसे चुनाव चिह्न कमल का फूल मिला था. वहीं चौधरी चरण सिंह की अगुवाई वाली लोकदल को खेत जोतता हुआ किसान चुनाव चिह्न मिला था. इस तरह से इन बड़ी पार्टिंयों को उनका चुनाव चिन्ह मिला था. 


 


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