Draught: इस बार तो गर्मी ने हद ही कर दी है. मार्च की शुरुआत के साथ ही तेज गर्मी की भी शुरुआत हो चुकी है. मार्च में गर्मी ने पिछले 122 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. मौसम विभाग ने बताया है कि मार्च में इतना ज्यादा तापमान 122 साल बाद देखने में आया है. यहां तक कि कई राज्यों में तो गर्मी को लेकर एडवाइजरी भी जारी की जा चुकी है. गर्मी का प्रकोप भारत के अलावा, दुनियाभर के कई देशों में देखने को मिल रहा है. अमेरिका में तो स्थिति और भी ज्यादा बुरी है. यहां के एक हिस्से में भयंकर सूखा पड़ रहा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले 1200 सालों में ऐसा नजारा देखने को नहीं मिला. 

साल 1900 वाले सूखे से ज्यादा गंभीर है स्थिति

नेचर जर्नल में छपी यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया के क्लाइमेट हाइड्रोलॉजिस्ट सेथ बॉरेनस्टेन की रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार साल 1900 में जो सूखा और अकाल पड़ा था, इस बार हालात उससे कहीं ज्यादा गंभीर हैं. यह रिसर्च ट्री रिंग पैटर्न पर आधारित थी, यानी मिट्टी में नमी का पता लगाने के लिए पेड़ों के तनों में बनी रिंग्स को देखा गया. बता दें कि इन रिंग्स से पेड़ों की उम्र का भी अनुमान लगाया जाता है. इनकी जांच से यह भी पता चल जाता है कि पेड़ की जड़ों को कितना पानी मिल रहा होगा. पेड़ों पर ये रिंग्स हर साल बनती हैं. पर्याप्त नमी मिलने पर ये चौड़ी और साफ होती हैं, जबकि सूखी जमीन पर इनका आकार छोटा हो जाता है. 

जमीन का 42% पानी सोखा जा चुका

इस रिसर्च में पाया गया कि उत्तरी अमेरिका के एक बड़े क्षेत्र में ट्री रिंग्स लगातार सिकुड़ती जा रही हैं. शोधकर्ताओं की मानें तो साल 2000 से लेकर अब तक मिट्टी का लगभग 42 प्रतिशत पानी सोखा जा चुका है. सूखे का असर झीलों और नदियों पर भी हो रहा है. पिछले साल की गर्मियों में यहां के दो बड़े जलाशयों, लेक मीड और लेक पॉवेल में पानी सबसे कम स्तर तक चला पहुंच गया था. इसके अलावा सात बड़े अमेरिकी स्टेट्स को पानी देने वाली कोलोरेडो नदी के जलस्तर में भी लगातार कमी आई है. हालात ये हैं कि कैलीफोर्निया समेत नवादा जैसे बड़े राज्यों में पानी के बंटवारे को लेकर विवाद भी शुरू हो चुका है.

कई यूरोपीय देशों पर दिख रहा असर

ऐसा नहीं है कि सूखे की समस्या से जूझने वाला अमेरिका अकेला देश है, बल्कि इस लिस्ट में कई यूरोपीय देश शामिल हैं. यूं तो इटली का वेनिस शहर अपनी खूबसूरती और साल भर पानी से भरी रहने वाली नहरों के लिए जाना जाता है. लेकिन पिछले कुछ ही सालों में अप्रत्याशित तरीके से यहां की नदियों का पानी भी घटते हुए सूखने के स्तर तक पहुंच चुका है.

100 गुना तेजी से गायब हो रहे पशु-पक्षी

चिंता की बात तो यह है कि क्लाइमेट चेंज की वजह से सिर्फ पानी ही नहीं सूख रहा, बल्कि पशु-पक्षियों पर भी इसका असर हो रहा है. शोधकर्ताओं का मानना है कि इसके कारण पशु-पक्षियों की बहुत सी प्रजातियां गायब होती जा रही हैं. हेलसिंकी यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के मुताबिक, इंसानी हस्तक्षेप और गतिविधियों के कारण करीब 100 गुना तेजी से जीव-जंतुओं का विनाश हो रहा है. 

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