जब हम इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, तो अक्सर हमें अक्सर लगता है कि पूरी दुनिया हमारी स्क्रीन पर खुली हुई है. हम एक क्लिक पर गूगल पर कुछ भी सर्च कर सकते हैं और सोशल मीडिया पर स्क्रॉल कर सकते हैं, ऐसे में लगता है सारी जानकारी हमारी मुट्ठी में है. हालांकि असलियत इससे कहीं अलग है. इंटरनेट या गूगल पर हमें सिर्फ वही दिखता है जो हमारी भाषा और एल्गोरिदम हमें दिखाना चाहते हैं.
जो हम सोचते हैं, उसी अंदाज में सर्च करते हैं
दरअसल, इंटरनेट एक ऐसी जगह है, जिसे हर कोई इस्तेमाल करता है, लेकिन हर इंसान इसे अलग नजरिए से देखता है. हम जिस भाषा में कोई भी चीज सोचते हैं, उसी भाषा में गूगल पर सर्च करते हैं और सोशल मीडिया पर हमें वो चीज उसी अंदाज में दिखाई देती है. यही वजह है कि अगर आप हिंदी या तमिल में इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं तो आपके सामने एक बिल्कुल अलग दुनिया खुल जाती है. अगर कोई अंग्रेजी या स्पैनिश इंटरनेट का इस्तेमाल करता है, तो उसे इंटरनेट की तस्वीर अलग अंदाज में दिखती है.
क्या रोल निभाता है एल्गोरिदम
इन परिस्थितियों में एल्गोरिदम अहम रोल निभाते हैं. ये हमें वही कंटेंट दिखाते और सुझाते हैं जिसे हम आसानी से समझ सकते हैं और जिसमें हमारी दिलचस्पी हो सकती है. ऐसे में इंटरनेट का एक बड़ा हिस्सा हमें नहीं दिखाई देता है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, भाषा हमारे लिए एक फिल्टर का काम करती है, और उसी फिल्टर के उस पार इंटरनेट का एक नया चेहरा छुपा रहता है, जो कि हमें नहीं दिखाई देता है.
लोग किस तरह करते हैं इंटरनेट का इस्तेमाल
मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट यूनिवर्सिटी के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर इनिशिएटिव के एक शोधपत्र ने इसी सच्चाई को बताया है. इसमें कहा गया कि अलग-अलग संस्कृतियों और भाषाओं में इंटरनेट का इस्तेमाल करने का तरीका बहुत अलग होता है. उदाहरण के तौर पर देखें तो पश्चिमी देशों में सोशल मीडिया का मतलब होता है ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना, लाइक और फॉलोअर्स बढ़ाना, लेकिन दूसरी संस्कृतियों में इंटरनेट का इस्तेमाल छोटे और नजदीकी रिश्ते बनाने के लिए भी किया जाता है.
इंटरनेट को लेकर हमारी धारणाएं
यही वह अंतर होता है जो कि लोगों को सोचने पर मजबूर करता है कि इंटरनेट को लेकर हमारी धारणाएं कितनी सीमित हैं. हम सिर्फ यह मानकर चलते हैं कि फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब या गूगल हर जगह एक तरह से ही काम करते होंगे, लेकिन असल में अलग-अलग देशों में इनका उपयोग बिल्कुल अलग तरह से होता है, जैसे म्यूजिक, साहित्य और खानपान हर संस्कृति में अलग होते हैं, वैसे ही इंटरनेट की दुनिया भी अलग-अलग होती है.
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