भारतीय सेना दुनिया की चौथी सबसे ताकतवर सेना है. ग्लोबल फायरपावर की रिपोर्ट बताती है कि 145 देशों कि लिस्ट में सैन्य ताकत में भारत ने चौथा स्थान हासिल किया है. भारतीय थल सेना में कुल 22 लाख के करीब सैनिक, 4201 कुल टैंक, डेढ़ लाख बख्तरबंद वाहन, 100 सेल्फ प्रोपेल्ड आर्टिलरी जैसे तमाम ताकतवर हथियार हैं. जिनके जरिए वे दुश्मनों का मुकाबला करने के लिए सक्षम हैं. भारतीय सेना सिर्फ युद्ध ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक आपदा के वक्त लोगों की सुरक्षा और आपातकालीन स्थिति में भी सक्रिय रूप से शामिल रहती है. इससे देश की सुरक्षा और कल्याण होता है. लेकिन क्या पुलिस की तरह से सेना के जवानों को भी एक-एक गोली का हिसाब देना होता है. चलिए जानें. 

क्या सेना भी देती है गोलियों का हिसाब

क्या आपको भी लगता है कि फिल्मों और सीरीज की तरह से सेना के जवान भी जब मर्जी चाहे तब धाएं-धाएं करके गोलियां बरसा सकते हैं? ऐसा नहीं है, पुलिस की तरीके से आर्मी के जवानों को भी एक-एक गोली का हिसाब देना पड़ता है. पुलिस हों या आर्मी या कोई अन्य फोर्स, उन्होंने कब, कहां, क्यों, कैसे गोली चलाई इन सभी का रिकॉर्ड रखा जाता है. इसके बदले में खाली कारतूस सौंपे जाते हैं. हालांकि कारतूस सौंपना हालातों के मद्देनजर होता है. लेकिन उनको गोलियों का हिसाब तो देना होता है. 

सेना से क्यों मांगा जाता है हिसाब

सेना के जवानों से गोलियों का हिसाब इसलिए लिया जाता है, जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि गोला-बारूद का दुरुपयोग तो नहीं हुआ है और इसका इस्तेमाल सिर्फ ऑर्थेराइज्ड उद्देश्य के लिए किया गया है. जवानों को जितने भी गोला-बारूद जारी किए जाते हैं, सभी का रिकॉर्ड रखा जाता है और इस्तेमाल के बाद उनको हिसाब देना होता है, कि उन्होंने क्या कहां पर इस्तेमाल किया है. इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई भी गोला-बारूद गायब न हो और उसका इस्तेमाल सिर्फ प्रशिक्षण और युद्ध के दौरान ही किया जाए. 

गोला-बारूद की चोरी गंभीर अपराध

सेना में गोला-बारूद एक बहुत जरूरी संपत्ति होती है, इसलिए इस पर ध्यान देना जरूरी होता है. इसका दुरुपयोग करना या फिर चोरी करना एक गंभीर अपराध माना जाता है. इसलिए गोलियों का हिसाब रखना जरूरी होता है, जो कि सेना में अनुशासन और जिम्मेदारी सुनिश्चित करता है.

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