Diwali 2025: उत्तर प्रदेश वैसे तो हर त्योहार के रंग में रंगा रहता है, लेकिन जब बात दिवाली की आती है तो एक शहर बाकी सब पर भारी पड़ता है और इसका नाम है अयोध्या. भगवान श्रीराम की जन्मभूमि मानी जाने वाली अयोध्या में दिवाली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि भक्ति और संस्कृति का जीवंत उत्सव है. यहां दिवाली को दीपोत्सव कहा जाता है और इसकी भव्यता देश ही नहीं, पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन चुकी है. लेकिन एक और शहर है, जहां की दिवाली अलग से मनाई जाती है, चलिए जानें.
इस शहर में अलग से मनाई जाती है दिवाली
वाराणसी की देव दीपावली एकदम अलग है. यह दिवाली के कुछ दिन बाद मनाई जाती है, जब माना जाता है कि देवता स्वयं गंगा तट पर आकर दीप जलाते हैं. उस दिन गंगा का हर घाट लाखों दीयों से जगमगाता है, और ऐसा लगता है जैसे आसमान के सितारे धरती पर उतर आए हों. श्रद्धालु इस दिव्य नजारे को देखने दूर-दूर से आते हैं. काशी की दिवाली सिर्फ रोशनी नहीं, बल्कि भक्ति, संगीत और अध्यात्म का संगम है, जहां मंत्रों की गूंज, आरती की लौ और दीपों की लहरें मिलकर अनोखी आस्था का वातावरण बनाती हैं.
अयोध्या की दिवाली
अयोध्या की दिवाली बाकी शहरों से अलग इसलिए होती है, क्योंकि इसकी जड़ें त्रेता युग से जुड़ी हैं. मान्यता के अनुसार, जब भगवान श्रीराम 14 साल के वनवास और रावण वध के बाद अयोध्या लौटे थे, तो पूरे नगर ने दीपों से उनका स्वागत किया था. उसी दिन से दीपावली मनाने की परंपरा यहीं से शुरू हुई. हर साल इसी ऐतिहासिक क्षण को याद करते हुए अयोध्या में दीपोत्सव का आयोजन किया जाता है.
जगमग होते हैं सरयू तट
राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन इस उत्सव को अब भव्य रूप दे चुके हैं. राम की पैड़ी और सरयू तट पर लाखों दीये जलाए जाते हैं. दीयों की यह सुनहरी झिलमिलाहट सरयू नदी में प्रतिबिंबित होती है और पूरा शहर मानो स्वर्ग में बदल जाता है. दीपोत्सव के दौरान अयोध्या में रामलीला, सांस्कृतिक कार्यक्रम, लेजर शो और शोभा यात्राएं भी होती हैं. भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण की प्रतिमाओं का राजसी स्वागत किया जाता है. कई देशों से आए कलाकार पारंपरिक वेशभूषा में प्रदर्शन करते हैं, जिससे यह उत्सव अंतरराष्ट्रीय स्वरूप ले चुका है.
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