Diwali Celebration In Mughal Era: भारत में रोशनी का पर्व दीपावली हमेशा से ही खास महत्व रखता आया है. यह त्योहार सिर्फ आम लोगों के बीच ही नहीं, बल्कि शासकों और उनके दरबारों में भी उत्साह के साथ मनाया जाता था. मुगल काल इसका एक बेहतरीन उदाहरण है. उस दौर में दीपावली का जश्न बेहद अनोखे ढंग से मनाया जाता था और इसे एक खास नाम भी दिया गया था, जश्न-ए-चिरागां, इसका अर्थ है रोशनी का उत्सव.
मुगलकाल में कैसे होती थी दिवाली
इतिहासकारों की मानें तो अकबर जैसे बादशाह ने दीपावली को शाही स्तर पर मनाना शुरू किया था. फतेहपुर सीकरी और आगरा के किले में इस दिन हजारों दीये जलाए जाते थे. लाल किले के रंग महल को भी विशेष रूप से सजाया जाता था. रोशनी के साथ आतिशबाजी का नजारा भी दरबार का हिस्सा हुआ करता था. उस समय पटाखों की जगह आकाश दीया जलाने की परंपरा थी. लंबी रस्सियों के सहारे ऊंचाई पर दीपक टांगा जाता और पूरा शहर उसकी रोशनी से जगमगाता था.
दिवाली के मौके पर होती थी खास रस्म
दिलचस्प बात यह है कि मुगल दरबार में दिवाली के मौके पर एक खास रस्म होती थी. उस दिन बादशाह को सोने और चांदी से तोला जाता था और फिर वे कीमती धातुएं व आभूषण जनता में दान कर दिए जाते थे. यह प्रथा केवल दरबारियों और अमीर-उमरावों को नहीं, बल्कि आम नागरिकों को भी इस उत्सव से जोड़ती थी.
कैसी होती थी सजावट
कहा जाता है कि मुगल काल में महिलाएं भी इस पर्व का आनंद लेने के लिए उत्सुक रहती थीं. कई बार वे कुतुब मीनार या किले की ऊंचाई पर चढ़कर आतिशबाजी और दीपों की रोशनी का नजारा देखती थीं. दिल्ली का चांदनी चौक और उसके आसपास की गलियां भी इस मौके पर सजाई जाती थीं. अमीर व्यापारी अपने-अपने मोहल्लों में दीप सजावट और रोशनी का इंतजाम करते थे, जिससे पूरा शहर एक बड़े उत्सव स्थल में बदल जाया करता था.
औरंगजेब के शासन में कैसी थी दिवाली
जहां आम लोग घर-घर दीप जलाकर खुशियां मनाते थे, वहीं शाही दरबार इस त्योहार को अपनी शान और वैभव से जोड़कर देखता था. जश्न-ए-चिरागां न सिर्फ उत्सव का नाम था, बल्कि यह इस बात का प्रतीक भी था कि दीपावली का महत्व उस दौर में भी उतना ही गहरा था, जितना आज है.
हालांकि औरंगजेब के शासनकाल में इन परंपराओं पर रोक लगाने की कोशिश हुई, लेकिन जनता के बीच दीपावली का उल्लास कभी कम नहीं हुआ. आज भी जब दीपावली आती है, तो इतिहास के पन्नों में दर्ज उस जश्न-ए-चिरागां की जगमगाहट भारतीय संस्कृति की विविधता और साझा परंपरा की याद दिलाती है.
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