भारत में दिवाली का त्योहार रौशनी, खुशियों और लक्ष्मी पूजन का प्रतीक माना जाता है. लेकिन इसी पावन अवसर पर एक ऐसा काला सच भी छिपा होता है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं. हर साल जैसे ही दिवाली नजदीक आती है, उल्लुओं पर संकट के बादल मंडराने लगते हैं. अंधविश्वास, तंत्र-मंत्र और धन की लालसा के चलते उल्लुओं की तस्करी तेज हो जाती है, खासकर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और बंगाल जैसे इलाकों में उल्लुओं की तस्करी सबसे तेज हो जाती है. इन बेजुबान पक्षियों को सिर्फ अंधविश्वास और लालच के कारण जंगलों से पकड़कर काले बाजार में बेचा जाता है. वन विभाग की सख्ती और कानून के बावजूद उल्लुओं की बलि और तस्करी हर साल बढ़ती जा रही है. ऐसे में चलिए जानते हैं कि दिवाली से पहले उल्लू क्यों पकड़े जाते हैं और इनके साथ क्या होता है. 

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दिवाली से पहले उल्लू क्यों पकड़े जाते हैं?

हिंदू मान्यताओं के अनुसार उल्लू मां लक्ष्मी की सवारी होता है, और दिवाली की रात यानी अमावस्या पर उसे देखने या उसकी पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. वहीं तांत्रिक क्रियाओं में विश्वास रखने वाले लोग मानते हैं कि दिवाली की रात अगर उल्लू की बलि दी जाए, तो लक्ष्मी जी हमेशा के लिए घर में वास कर लेती हैं. यही वजह है कि दिवाली से कुछ हफ्ते पहले से ही तस्कर उल्लुओं की तलाश में जंगलों में एक्टिव हो जाते हैं. लोग इसे अपने तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए खरीदते हैं और इनकी कीमत हजारों से लेकर लाखों तक लगाई जाती है. वहीं भारत के कुछ हिस्सों में मान्यता है कि उल्लू तांत्रिक शक्तियों का प्रतीक है. माना जाता है कि इसकी आंखों में सम्मोहन की ताकत होती है, चोंच से दुश्मन को हराया जा सकता है और पैर को तिजोरी में रखने से धन आता है. 

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दिवाली पर पकड़े गए उल्लू के साथ क्या होता है?

दिवाली से करीब एक महीना पहले ही उल्लू पकड़े जाने लगते हैं. इन पक्षियों को अंधेरे कमरों में रखा जाता है, उन्हें खास तंत्र विधियों से तैयार किया जाता है, मांस और शराब दी जाती है, और फिर दिवाली की रात को उनकी बलि दी जाती है. कुछ लोग मानते हैं कि लक्ष्मी और उनकी बहन अलक्ष्मी में संतुलन बनाने के लिए उल्लू की बलि जरूरी होती है. वन विभाग के अनुसार, कई तस्करी की कोशिशों को रोका गया है, लेकिन डिमांड ज्यादा होने की वजह से तस्कर नए तरीके अपनाते रहते हैं. 

भारत में उल्लू एक संरक्षित पक्षी है. भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 के तहत उल्लू को पकड़ना, बेचना या मारना पूरी तरह गैरकानूनी है. इसके बावजूद हर साल दिवाली के आसपास उल्लुओं की तस्करी और बलि की खबरें सामने आती हैं. हालांकि इस अपराध में दोषी पाए जाने पर तीन साल तक की सजा और भारी जुर्माना भी हो सकता है. 

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