Delhi Cloud Seeding: दिल्ली की जहरीली हवा से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने क्लाउड सीडिंग परियोजना की शुरुआत की थी. यह एक ऐसी तकनीक है जो कृत्रिम वर्षा कराकर प्रदूषकों को बहा कर ले जाती है. हालांकि दिल्ली सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम निराशाजनक साबित हुआ. आईआईटी कानपुर की टीम के कड़े प्रयासों के बावजूद दिल्ली एनसीआर में बारिश की एक भी बूंद नहीं गिरी. आइए जानते हैं क्या रही इसके पीछे की वजह.

Continues below advertisement

क्लाउड सीडिंग योजना में क्या गड़बड़ी हुई

28 अक्टूबर को सिल्वर आयोडाइड फ्लेयर्स से लदे विमानों ने आईआईटी कानपुर और मेरठ हवाई अड्डों से उड़ान भरी. विमान के जरिए दिल्ली और एनसीआर के खेकड़ा, बुराड़ी, उत्तरी कोराल बाग, मयूर विहार, साधकपुर, भोजपुरी और आसपास की जगह पर कुल 14 फ्लेयर्स छोड़े गए. लेकिन इसके बावजूद भी बादलों ने साथ नहीं दिया. आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट के मुताबिक वातावरण में नमी की मात्रा सिर्फ 10 से 15%थी. यह सफल क्लाउड सीडिंग के लिए जरूरी सीमा से काफी कम थी. आपको बता दें कि मौसम विभाग ने नोएडा में सिर्फ 0.1 मिमी बारिश दर्ज की, जिसका मतलब है कि यह प्रक्रिया विफल रही.

Continues below advertisement

कितना पैसा खर्च हुआ

दिल्ली सरकार द्वारा इस प्रदूषण नियंत्रण पहल के तहत पांच क्लाउड सीडिंग परीक्षणों के लिए 3.21 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे. इनमें से 1.28 करोड़ रुपए सिर्फ 28 अक्टूबर को किए गए परीक्षणों पर ही खर्च हो गए.

क्या होती है क्लाउड सीडिंग

यह एक ऐसी तकनीक है जिसे अक्सर कृत्रिम वर्षा के नाम से भी पहचाना जाता है. इसमें सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड या फिर सोडियम क्लोराइड जैसे रसायनों को बादलों में छिड़का जाता है. यह सभी कण नाभिक के रूप में काम करते हैं जिनके चारों तरफ नमी इकट्ठा होने लगती है. अंत में इनकी मदद से बारिश होती है. यह तकनीक सिर्फ तभी काम करती है जब बादलों में पहले से नमी मौजूद हो. इसका उद्देश्य प्रदूषण को नियंत्रण में लाना, बांधों और जलाशयों में जल के स्तर को बढ़ाना और साथ ही भयंकर तूफानों को नियंत्रित करना होता है.

क्लाउड सीडिंग के फायदे और नुकसान दोनों हैं. अगर फायदे की बात करें तो इसमें बारिश बढ़ाकर सूखा प्रभावित इलाकों को राहत मिलती है. इसी के साथ शहरी क्षेत्र में वायु प्रदूषण को कम करने में भी मदद मिलती है. इतना ही नहीं बल्कि अगर जंगलों में आग लग जाए तो उस आग पर काबू पाने में भी काफी मदद मिलती है. वहीं नुकसान की बात करें तो यह काफी महंगी प्रक्रिया है. साथ ही इसके परिणाम हमेशा निश्चित नहीं होते.

ये भी पढ़ें: दुबई से कितना सोना लाने पर नहीं लगेगा टैक्स, जान लीजिए लिमिट वरना पड़ेगा पछताना