भारत विविधताओं का देश है, यहां हर राज्य में, हर क्षेत्र में, हर संप्रदाय में अलग-अलग तरह से पूजा पद्धति, शादी विवाह और अन्य चीजें की जाती हैं. हालांकि, भारतीय सनातन परंपरा में जब भी कभी कोई शादी होती है, उसमें दूल्हा और दुल्हन अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेते हैं तभी शादी संपन्न मानी जाती है. लेकिन भारत में ही एक जगह ऐसी है जहां शादियां पानी को साक्षी मानकर पूरी होती हैं. आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि यह प्रथा कौन लोग और कहां करते हैं.

कहां होती है यह प्रथा

यह अनोखी प्रथा भारत के एक राज्य छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में होती है. यहां के आदिवासी समाज द्वारा एक अनोखी परंपरा से शादी निभाई जाती है. दरअसल, आदिवासी हमेशा से जल, जंगल और जमीन की पूजा करते रहे हैं. हालांकि, ये आदिवासी पानी को साक्षी मान कर शादी इसलिए करते हैं क्योंकि ये शादी के नाम होने वाली फिजूलखर्ची से बचना चाहते हैं. इन आदिवासियों की यह परंपरा आज से नहीं बल्कि कई सौ सालों से चली आ रही है.

पानी को ही क्यों मानते हैं साक्षी

दरअसल, जो आदिवासी समाज पानी को साक्षी मान कर अपने यहां होने वाली शादियों को संमन्न कराते हैं, वो धुरवा समाज से आते हैं और इस समाज में पानी की बहुत अहमियत होती है. इस आदिवासी समाज के लिए जल एक ऐसे पवित्र देवता के समान है जो जीवन देने का  काम करते हैं. सबसे बड़ी बात की शादी में जिस पानी का इस्तेमाल किया जाता है, वो एक खास पानी होता है. ये पानी बस्तर में ही बहने वाली नदी कांकेरी का होता है. कांकेरी नदी को धुरवा समाज में बहुत पवित्र माना जाता है और इस समाज में कोई भी शुभ कार्य इस नदी के पानी के बिना पूरा नहीं माना जाता है.

फेरे की अजीब परंपरा

आपने देखा होगा की जब एक लड़का लड़की की शादी होती है तो उस शादी में फेरे भी वही दोनों ही लेते हैं. हालांकि, यहां ऐसा नहीं है. इस इलाके की शादी में पूरा गांव दूल्हा और दुल्हन के साथ फेरे लेता है. इसके साथ ही यहां की शादियों में दहेज के नाम पर कुछ भी लिया या फिर दिया नहीं जाता है. अगर कोई इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश करता है तो इस समाज के बड़े लोग इसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं और ऐसा करने वाले लोगों पर जुर्माना लगा दिया जाता है.

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