Cyclone Montha: भारत का पूर्वी तट एक बार फिर से बड़े खतरे की आशंका पैदा कर रहा है. दरअसल चक्रवर्ती तूफान मोंथा के आंध्र प्रदेश की ओर तेजी से बढ़ने से पूर्वी तट के प्रभावित होने की आशंका के बीच 90 से 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलने और पूरे क्षेत्र में भारी बारिश होने का खतरा है. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक मोंथा आज शाम या फिर रात तक मछलीपट्टनम और कालिंगपट्टनम के बीच काकीनाडा के पास पहुंच सकता है. इसी बीच आंध्र प्रदेश और उड़ीसा के जिलों को हाई अलर्ट पर रखा गया है. लेकिन इस दौरान एक सवाल यह खड़ा होता है कि इन चक्रवातों के नाम इतने अजीब क्यों होते हैं? आइए जानते हैं कि इन तूफानों का नामकरण कैसे किया जाता है.

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क्यों किया जाता है चक्रवातों का नामकरण 

दरअसल चक्रवातों को नाम स्पष्टता और संचार के लिए दिए जाते हैं. इससे पहले मौसम विज्ञानियों, मीडिया और आम जनता के लिए तूफानों पर नजर रखना और उन पर चर्चा करना थोड़ा मुश्किल था. यह मुश्किल तब और बढ़ जाती थी जब कई तूफान एक साथ आते थे. अब इन चक्रवातों का नामकरण कर के यह फायदा होता है कि चेतावनियां स्पष्ट हो जाती हैं, भ्रम कम हो जाता है और साथ ही आपदा संचार तेज और अधिक प्रभावित होता है.

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कैसे रखे जाते हैं चक्रवातों के नाम 

उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र के लिए चक्रवातों के नाम विश्व मौसम विज्ञान संगठन और एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्रीय आर्थिक एवं सामाजिक आयोग के अंतर्गत गठित एक समिति द्वारा तय किए जाते हैं. आज के समय में इस नामकरण प्रणाली में 13 देश शामिल है. बांग्लादेश, भारत, ईरान, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, कतर, सऊदी अरब, श्रीलंका, थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात और यमन ये 13 देश हैं.

हर देश नामों की एक सूची तैयार करता है और प्रस्तुत करता है. जिसका इस्तेमाल तब क्रमिक रूप से किया जाता है जब भी कोई नया चक्रवात आता है. एक बार नाम का इस्तेमाल हो जाने के बाद उसे दोहराया नहीं जाता. इससे हर तूफान की मौसम संबंधी इतिहास में अपनी अलग पहचान होती है.

मोंथा क्या मतलब है

यह नाम थाईलैंड द्वारा सुखाया गया था और इसका मतलब है एक सुगंधित और सुंदर फूल. दरअसल हर चक्रवात का नाम कुछ दिशा निर्देशों को पालन करता है. यह छोटा, सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और अलग-अलग भाषाओं में उच्चारण में आसान होना चाहिए.

नाम अजीब क्यों लगाते हैं 

चक्रवातों के नाम अक्सर भाषा और सांस्कृतिक विविधता की वजह से अजीब लगते हैं. हर भागीदारी देश अपनी भाषा में नाम रखता है, जो वहां की वनस्पति, जीव या सांस्कृतिक प्रतीकों को दर्शाते हैं. जैसे बांग्लादेश ने 'बिपरजॉय' का नाम सुझाया था. यह बंगाली में 'आपदा' का अर्थ है. इसी तरह भारत ने 'तेज' सुझाया था, जिसका हिंदी में 'गति' या फिर 'शक्ति' मतलब होता है. इसी तरह 'मोचा' नाम यमन द्वारा प्रस्तावित किया गया था. यह कॉफी व्यापार के लिए प्रसिद्ध यामिनी बंदरगाह शहर 'मौखा' से प्रेरित था. वहीं अगर 'फानी' की बात करें तो यह नाम बांग्लादेश ने सुझाया था और इसका मतलब होता है 'सांप का फन'.

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