Clothes Color Origin: अपने फैशन के शौक को पूरा करने के लिए लोग महंगे कपड़े खरीदते हैं. कई बार उन्हें इसके लिए दोस्तों से कर्ज तक लेना पड़ जाता है, लेकिन बेहद कम लोगों को यह जानकारी होती है कि कपड़ों के कलर का ओरिजिन कैसे हुआ था. आज जो आप ऑनलाइन या ऑफलाइन अपने पसंद के कपड़े खरीद लेते हैं उसे तैयार करने और एक परफेक्ट कलर देने में काफी समय लगता है. इसकी शुरुआत कब हुई और इसका मशरूम, स्नेल और पेड़-पौधों से क्या कनेक्शन है. आज की स्टोरी में जानने वाले हैं. 


मशरूम, स्नेल और पेड़-पौधों से है इसका कनेक्शन?


कुछ प्रकार के मशरूमों का उपयोग कपड़ों को डाय करने और उसे नेचुरल टच देने के लिए किया जाता है. इससे तैयार होने वाले कलर कपड़ों को गहरे मिट्टी का कलर प्रदान करते हैं. एक बार जब इसमें कैमिकल मिलाया जाता है तो वह हर तरह के हल्का कलर तैयार करने योग्य हो जाता है. वहीं जब बात बैगनी रंग तैयार करने की होती है तो समुद्री जीवों, विशेष रूप से म्यूरेक्स घोंघे या स्नेल का इस्तेमाल किया जाता है. अंग्रेजी वेबसाइट मीडियम डॉट कॉम के मुताबिक, बैगनी रंग तैयार करना सबसे कठिन काम होता है. 


कपड़ा तैयार करने के लिए सिर्फ कलर तैयार करना ही सबसे बड़ी चुनौती नहीं होती है, बल्कि इसके लिए कपड़े के रॉ मटेरियल को तैयार करना एक बड़ा चैलेंज हो जाता है. जो पेड़-पौधों से तैयार हो पाता है, जिसमें कपास, सन और जूट का उपयोग खास तौर पर किया जाता है. 


क्या है इसका इतिहास?


कपड़े की रंगाई का पहला दर्ज उल्लेख 2600 ईसा पूर्व का है. मीडियम डॉट कॉम पर छपे एक आर्टिकल के मुताबिक, डाई का सबसे पहला रिकॉर्ड 40,000 साल पहले कलाकारों द्वारा चाक, मिट्टी, पशु फैट और जले हुए कोयले के संयोजन का उपयोग करके बनाया गया था. इसने पाँच रंगों का आधार बनाया: काला, सफ़ेद, लाल, पीला और भूरा. दुनिया के पहले कपड़ों के रंग जड़ी-बूटियों, पौधों, कीड़ों, जानवरों, मिट्टी और खनिजों से प्राप्त किए गए थे. बैंगनी पहले रंगों में से एक था जिसे रॉयल्टी के लिए संकेत दिया गया था. केवल अमीर और प्रतिष्ठित लोग ही लाल, नीले और बैंगनी जैसे गहरे और अग्रेसिव कलर के कपड़े खरीदते सकते थे. आज लगभग 90% कपड़े आर्टिफिशयल रूप से तैयार किए जाते हैं.


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