पुलिस की वर्दी सिर्फ कपड़ा नहीं, बल्कि सम्मान, जिम्मेदारी और कर्तव्य का प्रतीक है. वर्षों तक कानून और व्यवस्था बनाए रखने के बाद यह पहचान रिटायरमेंट के साथ बदल जाती है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी अपने गौरव का प्रतीक, यानी वर्दी रिटायरमेंट के बाद भी पहन सकते हैं? यह जानना हर पुलिसकर्मी और आम नागरिक के लिए जरूरी है.

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रिटायरमेंट के बाद वर्दी पहनने का नियम

पुलिसकर्मियों की वर्दी केवल सक्रिय सेवा का प्रतीक होती है. रिटायरमेंट के बाद इस जिम्मेदारी का अधिकार समाप्त हो जाता है, इसलिए आमतौर पर वर्दी पहनना नियमों के खिलाफ माना जाता है. भारत में पुलिस अधिनियम 1861 और उसके बाद किए गए संशोधन स्पष्ट रूप से बताते हैं कि वर्दी का उपयोग केवल तैनात कर्मियों के लिए वैध है. रिटायर होने के बाद बिना अनुमति वर्दी पहनना कानूनी उल्लंघन माना जा सकता है और इसे फोर्स की पहचान का अनुचित इस्तेमाल भी कहा जा सकता है.

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विशेष अवसरों पर वर्दी पहनने की अनुमति

हालांकि कुछ विशेष परिस्थितियों में रिटायर कर्मियों को वर्दी पहनने की अनुमति मिल सकती है. ऐसे अवसरों में पुलिस स्मृति दिवस, वीरता पुरस्कार वितरण, राज्य स्तरीय कार्यक्रम या औपचारिक समारोह शामिल हैं. इन परिस्थितियों में संबंधित विभाग की अनुमति मिलने पर अधिकारी केवल समारोह की अवधि तक ही वर्दी पहन सकते हैं.

मेडल और बैज का प्रदर्शन

सेवानिवृत्त अधिकारी अपने मेडल, बैज या रैंक चिन्ह को औपचारिक ड्रेस या नागरिक कपड़ों पर प्रदर्शित कर सकते हैं. पूरी यूनिफॉर्म पहनने की अनुमति केवल राष्ट्रपति पदक या विशेष सम्मान प्राप्त वरिष्ठ अधिकारियों को ही सीमित अवसरों पर मिलती है. यह अपवाद के रूप में माना जाता है और सामान्य नियमों में शामिल नहीं होता है.

सामाजिक दृष्टिकोण और विवाद

सामाजिक दृष्टि से भी इस पर मतभेद हैं. कुछ लोग मानते हैं कि वर्दी पुलिसकर्मी की आजीवन पहचान है और इसे विशेष अवसरों पर पहनने की आजादी होनी चाहिए. वहीं, दूसरे पक्ष का कहना है कि वर्दी केवल सक्रिय सेवा का प्रतीक है, इसलिए इसे रिटायरमेंट के बाद पहनना अनुशासन के खिलाफ है.

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