दुनिया में अब तक सबसे खतरनाक हथियार परमाणु बम को माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि परमाणु बम एक बार में पूरे शहर को तबाह कर सकते हैं. दुनिया ने परमाणु बम की ताकत को पहली बार तब देखा था, जब द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नाकासाकी शहर पर परमाणु हमले किए थे. ये बम इतने घातक थे कि दोनों शहर 80 से 90% पूरी तरह तबाह हो गए थे और इसके रेडिएशन का असर कई सालों तक देखने को मिला था.
हालांकि, हम आपसे कहें कि दुनिया में ऐसे हथियार भी मौजूद हैं, जो परमाणु बम से भी खतरनाक हो सकते हैं. शायद आपको हमारी बातों पर यकीन न हो, लेकिन जैविक हथियार (Biological Weapons) ऐसे ही हथियार हैं, जिन्हें परमाणु बम से भी खतरनाक माना जाता है. हालांकि, ये हथियार सिर्फ 17 देशों के पास ही हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि बाकी के देश इन हथियारों को क्यों नहीं बना पाते?
पहली बार कब हुआ था इनका प्रयोग?
दुनिया में पहली बार जैविक हथियारों के इस्तेमाल प्रथम विश्वयुद्ध में हुआ था. जर्मनी ने इस युद्ध में एंथ्रेक्स और ग्लैंडर्स बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया था. इसके बाद दूसरे विश्वयुद्ध में भी 1939 से 1945 के दौरान जापान ने भी चीन के खिलाफ जैविक हथियारों का प्रयोग किया था. इसके बाद कई बार जैविक हथियारों के इस्तेमाल की खबरें आईं. रूस और यूक्रेन युद्ध में भी रूस पर जैविक हथियारों के इस्तेमाल के आरोप लगे थे.
सिर्फ 17 देशों के पास हैं ये हथियार?
माना जाता है कि अमेरिका, रूस, चीन, जर्मनी समेत दुनिया के 17 देश ऐसे हैं, जो जैविक हथियार बना चुके हैं. हालांकि, आज तक किसी भी देश ने जैविक हथियारों के होने की बात को स्वीकार नहीं किया है. माना जाता है कि चीन की वुहान लैब से निकला कोरोना वायरस भी एक तरह का जैविक हथियार ही था, लेकिन चीन ने इस बात को कभी नहीं माना.
कोई देश क्यों नहीं बना सकता जैविक हथियार?
जैविक हथियार इतने खतरनाक होते हैं कि ये पूरे देश को तबाह कर सकते हैं. हालांकि, इनका असर तुरंत नहीं दिखाई देता. बॉयोलॉजिक वेपन्स पीढ़ियों तक अपना असर दिखाते हैं. इन हथियारों के निर्माण और प्रयोग पर रोक लगाने के लिए पहली बार 1925 में जिनेवा प्रोटोकॉल के तहत कई देशों ने बातचीत शुरू की थी. 1972 में बायोलॉजिकल वेपन कन्वेंशन की स्थापना की गई, जिस पर 22 देशों ने हस्ताक्षर किए थे. इसका मकसद दुनिया में जैविक हथियारों के निर्माण और प्रसार पर रोक लगाना था. आज भारत समेत 183 देश इस कन्वेंशन के सदस्य हैं. जैविक हथियारों के निर्माण और इस्तेमाल पर लगे प्रतिबंध के पीछे यही कन्वेंशन है, जो दुनिया के ताकतवर देशों को इन हथियारों के प्रसार से रोकता है.
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