Bihar Elections: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 होने वाले हैं. इस बार बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर कई नए चेहरे अपनी किस्मत आजमाते नजर आने वाले हैं. बिहार में कई दिग्गजों ने सालों से हार-जीत का चेहरा देखा है. यहां की राजनीति में 1990 का साल एक ऐतिहासिक मोड़ लेकर आया. इसी साल पहली बार लालू प्रसाद यादव ने राज्य की सत्ता संभाली और मुख्यमंत्री बने. लेकिन आखिर उनसे पहले बिहार का मुख्यमंत्री कौन था और लालू ने किसे हराकर गद्दी हासिल की, चलिए जानें.
लालू से पहले कौन से बिहार से सीएम
1980 के दशक के आखिर तक बिहार की राजनीति कांग्रेस के इर्द-गिर्द घूमती रही थी. 1985 के चुनाव में कांग्रेस नेता डॉ. भागवत झा आजाद मुख्यमंत्री बने, लेकिन जल्द ही आंतरिक खींचतान और अस्थिरता ने उनकी सरकार को प्रभावित किया. इसके बाद कई बार नेतृत्व परिवर्तन हुआ. 1989 में सत्येन्द्र नारायण सिन्हा (कांग्रेस) मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनका कार्यकाल भी ज्यादा लंबा नहीं चला. दिसंबर 1989 में सत्ता की कमान एक बार फिर डॉ. जगन्नाथ मिश्रा के हाथों में आई, जिन्होंने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
लालू यादव ने किसे हराकर संभाली थी बिहार की गद्दी?
लेकिन यह दौर कांग्रेस के लिए आसान नहीं था. जनता में भ्रष्टाचार और बदहाली को लेकर गुस्सा था. ऐसे में 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल ने उभरकर नया समीकरण बनाया. जनता दल ने करिश्माई नेता लालू प्रसाद यादव को आगे कर चुनाव लड़ा. लालू ने अपनी सशक्त चुनावी रणनीति, पिछड़े वर्गों की राजनीति और छात्र आंदोलन की पृष्ठभूमि के दम पर जनता का समर्थन हासिल किया.
चुनाव नतीजों में जनता दल को अच्छी बढ़त मिली और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई. नतीजतन, 10 मार्च 1990 को लालू प्रसाद यादव ने बिहार के 18वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. इस तरह उन्होंने डॉ. जगन्नाथ मिश्रा की कांग्रेस सरकार को पराजित करके सत्ता पर कब्जा किया.
लालू ने पिछड़े वर्गों और वंचित तबकों को साधा
लालू यादव का मुख्यमंत्री बनना केवल राजनीतिक बदलाव नहीं था, बल्कि यह सामाजिक न्याय और मंडल राजनीति का उदय भी था. इससे पहले बिहार की सत्ता पर ऊपरी जातियों का प्रभाव माना जाता था, लेकिन लालू ने पिछड़े वर्गों और वंचित तबकों को सीधे राजनीति के केंद्र में ला दिया. 1990 का चुनाव और लालू यादव की जीत ने बिहार की राजनीति का चेहरा पूरी तरह बदल दिया. कांग्रेस जो लंबे समय से राज्य की सत्ता में थी, हाशिए पर चली गई और जनता दल के नेतृत्व में एक नए राजनीतिक युग की शुरुआत हुई.