Bihar Elections: चुनाव का मौसम आते ही एक सवाल हर वोटर के मन में उठता है, ईवीएम पर कौन सा उम्मीदवार किस नंबर पर दिखाई देगा? खासकर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे महत्वपूर्ण चुनावों में यह सवाल और भी ज्यादा चर्चा में रहता है. कुछ लोग मानते हैं कि यह क्रम पार्टी के अनुसार तय होता है, तो कुछ सोचते हैं कि यह A, B, C, D के अल्फाबेट के हिसाब से होता है. लेकिन हकीकत इससे पूरी तरह अलग है. चलिए जान लेते हैं.
EVM पर कैसे तय होता नंबर
दरअसल, ईवीएम में उम्मीदवारों के नाम का क्रम उस राज्य की भाषा और वर्णमाला पर निर्भर करता है. हिंदी भाषी राज्यों जैसे बिहार में नामों को हिंदी वर्णमाला (देवनागरी लिपि) के अनुसार लगाया जाता है. जैसे कि अगर ‘क’ शब्द वर्णमाला में सबसे पहले आता है, इसलिए अगर किसी का नाम क से शुरू है तो उसका नाम ईवीएम पर पहले नंबर पर आएगा. इसके बाद के अक्षरों के नाम उसी क्रम में आएंगे. यही कारण है कि उम्मीदवार और पार्टियों को अपने प्रचार में कभी-कभी वर्णमाला के आधार पर रणनीति बनानी पड़ती है.
वीवीपैट का इस्तेमाल
ईवीएम में केवल नाम और पार्टी का चिन्ह ही अंकित होता है. हालांकि, वोटिंग की सुरक्षा को लेकर कई बार सवाल उठते रहे हैं. इसी चिंता को ध्यान में रखते हुए Election Commission of India ने ईवीएम के साथ VVPAT की सुविधा भी शुरू की. VVPAT के जरिए, जब कोई वोटर किसी उम्मीदवार को वोट देता है, तो मशीन उस उम्मीदवार की पहचान वाली स्लिप दिखाती है. यह स्लिप मतदाता को नहीं दी जाती और न ही इसमें वोटर की पहचान लिखी होती है. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर वोट सही उम्मीदवार को गया है.
क्या काम करता है वीवीपैट
विवादित परिस्थितियों में, VVPAT का उपयोग करके वोटों की सही गिनती की जा सकती है. बिहार के चुनावों में यह प्रक्रिया और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि यहां भारी मतदाता संख्या और कई प्रत्याशी होने के कारण वोटिंग का क्रम और सुरक्षा दोनों अहम मुद्दे बन जाते हैं. ईवीएम और VVPAT ने भारतीय चुनाव प्रक्रिया को आधुनिक, तेज और सुरक्षित बनाने में अहम भूमिका निभाई है. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भी इन तकनीकों की मदद से हर वोट सही तरीके से गिना जाएगा और मतदाता अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए सुरक्षित रूप से मतदान कर पाएंगे.
इस तरह, ईवीएम में नाम का क्रम राज्य की भाषा और वर्णमाला, और वोटिंग की सुरक्षा VVPAT के माध्यम से सुनिश्चित होती है. यह न केवल चुनाव को पारदर्शी बनाता है, बल्कि मतदाता के लिए भरोसा भी पैदा करता है.