Bihar Election Result 2025: 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित चुके हैं. एनडीए ने राज्य में जबरदस्त जीत हासिल की है और अब सरकार गठन पर ध्यान दिया जा रहा है. इसी बीच एक सवाल उठ रहा है कि क्या राज्यपाल किसी को शपथ लेने से रोक सकता है, भले ही वह व्यक्ति पहले ही विधायक दल का नेता चुन लिया गया हो? आइए जानते हैं इस सवाल का जवाब.

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राज्यपाल की भूमिका 

जब भी कोई पार्टी या फिर चुनाव पूर्व गठबंधन विधानसभा में बहुमत हासिल कर लेता है तो राज्यपाल की भूमिका काफी हद तक औपचारिक बन जाती है. संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत राज्यपाल को बहुमत दल के चुने गए नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करना होता है. इसमें पसंद या फिर व्यक्तिगत संतुष्टि का कोई मामला नहीं है बल्कि यह एक संवैधानिक दायित्व है.

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राज्यपाल सिर्फ आरोपों, राजनीतिक मतभेद या फिर कुछ शंकाओं के आधार पर शपथ से इनकार नहीं कर सकते. जैसे ही कोई भी नेता विधायक के बहुमत का समर्थन साबित करता है राज्यपाल उन्हें शपथ दिलाने के लिए बाध्य हो जाते हैं. 

राज्यपाल विवेकाधिकार कब इस्तेमाल होता है 

राज्यपाल की विवेकाधिकार शक्तियां तब लागू होती हैं जब मामला साफ ना हो. यदि किसी भी दल के पास बहुमत नहीं है तो राज्यपाल को यह तय करना होगा कि सरकार बनाने के लिए पहले किसे बुलाया जाए. ऐसे मामले में सबसे ज्यादा संख्या बल किसके पास है, कौन बहुमत को साबित कर सकता है और साथ ही किसके पास स्थिर समर्थन है जैसी वजह जरूरी हो जाती हैं.

लेकिन जब किसी विधायक दल या गठबंधन के पास बहुमत होती है तो राज्यपाल उनके निर्वाचित नेता को नजरअंदाज नहीं कर सकता. 

किस स्थिति में राज्यपाल शपथ के इनकार कर सकते हैं 

राज्यपाल सिर्फ एक दुर्लभ स्थिति में ही शपथ से इंकार कर सकते हैं. यदि नेता कानूनी रूप से अयोग्य घोषित हो. ऐसे कानून के तहत दोषी ठहराए जाना और सजा सुनाई जाना तुरंत अयोग्यता की वजह बनते हैं. इसके अलावा विधानसभा का सदस्य ना होना या 6 महीने के अंदर निर्वाचित ना होना. साथ ही कानूनी छूट के बिना लाभ का पद धारण करना या न्यायालय द्वारा दिवालिया या फिर मानसिक रूप से बीमार घोषित किया जाना.

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