Bihar Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के लिए 6 और 11 तारीख को मतदान होने जा रहा है. इसी बीच एक सवाल यह उठ रहा है कि क्या भारत में चुनाव नतीजे की घोषणा के बाद उन्हें चुनौती दी जा सकती है? आइए जानते हैं क्या है इस सवाल का जवाब और क्या कहता है इसके पीछे का कानून.

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चुनावी नतीजों को चुनौती देने का कानूनी अधिकार 

भारत में चुनाव नतीजों की घोषणा के बाद उन्हें चुनौती दी जा सकती है. चुनाव आयोग द्वारा नतीजे घोषित करने के बाद सिर्फ एक ही कानूनी उपाय उपलब्ध होता है, वह है जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत चुनाव याचिका दायर करना. याचिका दायर होने पर चुनाव आयोग द्वारा नहीं बल्कि संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा विचार किया जाता है. इससे यह पक्का होता है कि चुनौती का फैसला चुनावी प्रशासन के बजाय न्यायिक समीक्षा के जरिए से हो.

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परिणाम को कौन चुनौती दे सकता है 

कानून के अंतर्गत दो श्रेणियों के व्यक्ति परिणाम को चुनौती दे सकते हैं. पहला आता है कोई भी उम्मीदवार जिसने वास्तव में चुनाव लड़ा हो और दूसरा आता है संबंधित निर्वाचन क्षेत्र का कोई भी मतदाता. इससे यह पक्का होता है की चुनौती देने का अधिकार सिर्फ राजनीतिक प्रतिभागियों तक ही सीमित ना रहे बल्कि मतदाताओं को भी यह सहूलियत मिल.

याचिका कब और कहां दायर की जाती है 

इसके लिए चुनाव याचिका उस राज्य के हाई कोर्ट में दायर की जानी चाहिए जहां पर चुनाव हुआ था. इसी के साथ एक सख्त समय सीमा भी है. याचिका परिणाम घोषित होने के 45 दिन के अंदर दायर की जानी चाहिए. अगर यह समय सीमा निकल जाती है तो चुनौती को स्वीकार नहीं किया जाएगा. 

परिणामों को चुनौती देने के आधार 

यह चुनौती इसलिए नहीं दी जा सकती क्योंकि अंतर कम है या फिर किसी का मानना है कि विजेता को नहीं जीतना चाहिए था. याचिका में कानून द्वारा मान्यता प्राप्त आधारों का स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए. जैसे कि चुनाव के समय विजेता उम्मीदवार की अयोग्यता, उसका भ्रष्ट व्यवहार (रिश्वतखोरी, धमकी या सरकारी तंत्र का गलत इस्तेमाल), नामांकन पत्र को अनुचित तरीके से स्वीकार या फिर अस्वीकार करना, मतदान या मतगणना में गलत व्यवहार (गलत गिनती या फिर अमान्य मतों की अनुमति देना), चुनाव के कानून का उल्लंघन.

याचिका दायर करने के बाद क्या होता है 

उच्च न्यायालय इस मामले की सुनवाई एक सिविल ट्रायल की तरह करता है. इसमें गवाहों को बुलाया जाता है और सभी दस्तावेजों की जांच की जाती है. हालांकि कानून उच्च न्यायालय को ऐसे मुकदमों को 6 महीने के अंदर पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करता है. अगर कोई भी पक्ष उच्च न्यायालय के फैसले से असंतुष्ट है तो वह भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भी अपील कर सकता है. 

भारतीय राजनीतिक इतिहास के कुछ उदाहरण 

सबसे ऐतिहासिक मामलों में से एक है इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राजा नारायण 1975. राजा नारायण ने चुनावी कदाचार का आरोप लगाते हुए इंदिरा गांधी की 1971 की चुनावी जीत को चुनौती दी थी. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ फैसला सुनाया था. जिससे एक बड़ा संवैधानिक और राजनीतिक संकट बना गया था. इसके परिणाम स्वरुप आपातकाल की घोषणा हुई थी. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसमें हस्तक्षेप किया था. इसी के साथ अभी हाल ही में हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के बाद 23 याचिकाएं दायर की गई है.

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