दिल्ली के बाटला हाउस इलाके में रहने वाले लोगों के लिए यह थोड़ा मुश्किल का वक्त है. यहां पर एक हफ्ते के अंदर दो जगहों पर तोड़फोड़ के नोटिस चिपका दिए गए हैं. बीते सोमवार को भी दिल्ली विकास प्रधिकरण यानि डीडीए ने मुरादी रोड स्थित खसरा नंबर-279 पर बने मकानों व दुकानों पर नोटिस चिपका दी गई है. इन लोगों को मकान खाली करने के लिए 10 जून तक का अल्टीमेटम दिया गया है. अगर तब तक कार्रवाई नहीं की गई तो 11 जून को तोड़फोड़ कर दी जाएगी. इससे पहले 22 मई को सिंचाई विभाग ने मुरादी रोड स्थित खसरा नंबर- 277 पर बने मकानों पर नोटिस चिपकाए थे.
यहां पर लोगों का कहना है कि बाटला हाउस में कुछ घर तो करीब चार-पांच दशक पुराने बने हैं. ऐसे में समझने वाली बात यह है कि क्या इन घरों पर 12 साल तक कब्जे वाला नियम लागू नहीं होता है? अब यह भी जान लें कि आखिर यह 12 साल कब्जे वाला नियम आखिर क्या है.
क्या है 12 साल तक कब्जे वाला नियम
अगर आपकी संपत्ति पर किसी ने अवैध कब्जा कर लिया है और आपने उसे हटाने में लेट-लतीफ किया तो उम्मीद है कि वो जगह आपके कब्जे से चली जाए. दरअसल साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था कि अगर वास्तविक या वैध मालिक अपनी अचल संपत्ति को दूसरे के कब्जे से वापस लेने के लिए समयसीमा के अंदर कोई कदम नहीं उठाया तो उस पर से उनका मालिकाना हक खत्म होकर वह संपत्ति अवैध कब्जे वाले के पासही चली जाएगी. लिमिटेशन एक्ट 1963 के तहत निजी अचल संपत्ति पर लिमिटेशन की वैधानिक अवधि 12 साल, जबकि सरकारी अचल संपत्ति के मामले में यह 30 साल है. यह समय कब्जे के दिन से शुरू हो जाता है.
12 साल बाद जमीन पर कब्जे वाले का हक
कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान की व्याख्या करते हुए कहा है कि जिसने अगर उस अचल संपत्ति पर 12 साल से अधिक समय से कब्जा कर रखा है और अगर 12 साल के बाद उसे वहां से हटाया गया तो उसके पास संपत्ति पर दोबारा अधिकार के लिए कानून की शरण में जाने का अधिकार होता है. अगर 12 साल से किसी जमीन पर किसी ने अवैध कब्जा किया है और मालिक उसे नहीं हटा रहा है तो अवैध कब्जा करने वाले को मालिकाना हक मिलेगा.
12 साल कब्जे वाला कानून सरकारी जमीन पर भी होगा लागू?
अब सवाल है कि अगर बाटला हाउस में कुछ घर चार-पांच दशक पुराने हैं, तब तो उन पर यह नियम लागू होता है. ऐसे में तो फिर कोई उनके घर को नहीं गिरा सकता है. नहीं, लेकिन ऐसा नहीं है. 12 साल कब्जे वाले नियम में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को स्पष्ट रूप से कह दिया था कि अगर किसी सरकारी जमीन पर अवैध तरीके से अतिक्रमण हुआ है, तब उसे इस नियम की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा. सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे को कभी कानूनी मान्यता नहीं मिल सकती है.
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