India And Baloch Army: पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में मंगलवार को एक ट्रेन पर बलूच के लड़ाकों ने कब्जा कर लिया और उसे हाईजैक कर लिया. पाक सरकार का कहना है कि अब तक करीब 104 लोगों को बचाया जा चुका है और बाकियों की रिहाई के लिए अभी भी प्रयास जारी है. बलूचिस्तान में BLA काफी समय से एक अलग देश की मांग कर रहा है. भारत के लिए ये मुद्दा इसलिए भी जरूरी हो जाता है, क्योंकि 2016 के स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी ने लाल किले की प्राचीर से अपने भाषण में बलूचिस्तान और गिलगिट के लोगों के प्रति अपनी संवेदना दिखाई है. 

कई साल पहले जब बांग्लादेश भी अलग राष्ट्र की मांग कर रहा था, तब भारत ने ही उसका साथ दिया था. तब जाकर आज वो अलग देश बन पाया है. ऐसे में सवाल है कि क्या पीएम मोदी, पंडित नेहरू और कांग्रेस की गलतियों से सबक लेकर बलूचिस्तान की मांग में उसका साथ देंगे. चलिए इस बारे में जानने के लिए इतिहास के कुछ पन्ने पलटते हैं. 

बलूचिस्तान की तरह बांग्लादेश ने भी की थी अलग देश की मांग

ऐसा माना जाता है कि जब भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के वक्त देश की रियासतों का बंटवारा हो रहा था तब बलूचिस्तान, भारत आना चाह रहा था. लेकिन जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस की कुछ गलतियों के कारण पाक की सेना बलूचिस्तान पर कार्रवाई की और उसे जबरदस्ती अपने में मिला लिया. ऐसे में भारत के पास पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए एक बेहतरीन मौका है. कुछ इसी तरह जब आज से करीब 53 साल पहले बांग्लादेश भी अलग देश बनाने की मांग कर रहा था तो भारत ने उसका साथ दिया था. 

भारत ने की थी मुक्ति वाहिनी की मदद

बांग्लादेश की आजादी में भारत का अहम योगदान रहा है. अगर भारत की सेनाओं ने मुक्ति वाहिनी की मदद न की होती तो शायद बांग्लादेश का आस्तित्व ही न होता. दरअसल मुक्ति वाहिनी एक बंगाली शब्द है जिसका अर्थ होता है स्वतंत्रता सेनानी या फिर आजाद सेना. इसे बांग्लादेश फोर्सेज के नाम से भी जानते हैं, लेकिन पाकिस्तान इसे आतंकी संगठन करार देता है. क्योंकि इसी की वजह से 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के नाम से बांग्लादेश बना था. 

इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के लिए जुटाया था समर्थन

7 मार्च 1971 के बांग्लादेश के संस्थापक और यहां की पीएम शेख हसीना के पिता मुजीब-उर-रहमान ने पाकिस्तान के लोगों से कहा था कि वो खुद को संघर्ष के लिए तैयार करें. इसी दिन से पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष शुरू हुए और मिलिट्री ने इसे ऑपरेशन सर्च लाइट का नाम दे दिया. उस वक्त भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं. उन्होंने न सिर्फ बांग्लादेश के लोगों को भारत में शरण दी, बल्कि दुनियाभर में घूम-घूमकर इस देश के लिए समर्थन भी जुटाया था. वो इंदिरा गांधी ही थीं, जिनके राज में बांग्लादेश के 10 मिलियन लोगों को त्रिपुरा, मेघालय, पश्चिम बंगाल और असम में शरण दी गई थी. इन लोगों को हर मदद उपलब्ध कराई गई थी. 

उस वक्त अमेरिका ने की थी पाकिस्तान की मदद

उस समय अमेरिका पाकिस्तान की मदद कर रहा था, लेकिन फिर भी भारत कमजोर नहीं पड़ा और बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों को पूरी मदद की थी. इस दौरान इनको हथियारों से लेकर ट्रेनिंग की फैसिलिटी भी मुहैया कराई गई थी. करीब नौ महीने तक ये संघर्ष चला था, तब जाकर पूर्वी पाकिस्तान दुनिया के नक्शे में शामिल हुआ था. इस दौरान करीब तीन मिलियन लोगों की हत्या हुई, तीन लाख महिलाओं का रेप हुआ और कई लोगों को घरों को जलाकर राख कर दिया गया था. 25 मार्च 1971 को शेख मुजीब उर रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्होंने पूरी दुनिया में मदद की गुहार लगाई, लेकिन इसे सिर्फ भारत ने सुना. मुक्ति वाहिनी और भारत की मदद की वजह से ही पाकिस्तान ने सरेंडर किया था.