एयरफोर्स के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में पहुंचकर इतिहास रच दिया है. उनके साथ और भी चार लोग इस टीम में शामिल हैं. बीते दिन पीएम मोदी ने शुभांशु शुक्ला से बातचीत की और शुभांशु ने उनको अंतरिक्ष में पहुंचकर अपना एक्सपीरियंस शेयर किया है. उन्होंने बताया कि धरती और अंतरिक्ष में बहुत ज्यादा फर्क है और वहां पर सबसे बड़ा चैलेंज है सोना. उनका कहना था कि भारत बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है और जितना हमारा दिमाग शांत रहेगा, हम उतनी जल्दी चीजों को समझेंगे. मानव के अंतरिक्ष के पहुंचते ही लोगों के दिमाग में कई तरह के ख्याल आते हैं. सबसे पहला सवाल तो यह होता है कि आखिर वे इतनी दूरी से बिना किसी मोबाइल टावर के धरती पर कैसे कम्युनिकेशन करते हैं. आइए आज इस सवाल का जवाब खोजें.
विज्ञान की वजह से आए तमाम बदलाव
अंतरिक्ष में किसी तरह की हवा नहीं होती है और वैक्यूम में भी किसी भी तरहा का कम्युनिकेशन मुश्किल होता है. न तो वहां पर इंटरनेट के कोई तार हैं और न कोई केबल बिछा हुआ है, ऐसे में यह बड़ा सवाल तो है कि आखिर अंतरिक्ष में जो स्पेस स्टेशन है, वहां से एस्ट्रोनॉट धरती पर कैसे कॉल या वीडियो कॉल करते हैं. जैसे जैसे विज्ञान ने तरक्की कर ली है, वैसे वैसे तमाम बदलाव आ चुके हैं. ऐसे में ISS पर हर वक्त वैज्ञानिक मौजूद रहते हैं और धरती पर मौजूद स्पेस एजेंसियां उनसे लगातार संपर्क में रहती हैं. वहीं स्पेस में बहुत सारे सैटेलाइट हैं जो कि वहां से तस्वीरें लेकर धरती पर भेजते हैं.
आसान नहीं है स्पेस और धरती से कम्युनिकेशन
वैज्ञानिकों की मानें तो अंतरिक्ष में कम्यनिकेशन करना आसान काम नहीं है. चांद पर मौजूद रोवर हो आर्टेमिस मिशन हो या फिर ISS सभी से संपर्क के लिए NASA का स्पेस कम्युनिकेशन एंड नेविगेशन सिस्टम यानि (SCaN) काम करता है. कोई भी कम्युनिकेशन नेटवर्क ट्रांसमिटर-नेटवर्क-रिसीवर की मदद से काम करता है. ट्रांसमिटर उस मैसेज को कोड में बदलकर नेटवर्त के जरिए भेजता है और उधर से रिसीवर रिसीव करके उसको डिकोड करता है. यह तरीका धरती पर तो काम करता है, लेकिन स्पेस में दिक्कत यह होती है कि एयरक्राफ्ट सैकड़ों किलीमोटीर प्रति घंटे की रफ्तार से भागते हैं और ऐसे में उनसे कम्युनिकेट करना आसान नहीं है.
किस तकनीक का इस्तेमाल करता है नासा
इस समस्या के लिए NASA ने पूरी धरती के सातों महाद्वीपों पर बड़े-बड़े एंटीना लगाए हैं. इनकी जगह इस हिसाब से चुनी गई है कि स्पेसक्राफ्ट और ग्राउंट स्टेशन के बीच कम्युनिकेशन की मुख्य धुरी के तौर पर काम करते हैं. ये एंटीना लगभग 230 फुट के होते हैं और इतना बड़ा आकार और हाई फ्रीक्वेंसी होने की वजह से इनके जरिए 200 करोड़ मील तक भी संपर्क किया जा सकता है. इसके अलावा नासा के पास कई रिले सैटेलाइट भी हैं, जिनकी मदद से संपर्क किया जा सकता है. वर्तमान में नासा रेडियोवेव का इस्तेमाल करता है. हालांकि नासा इन्फ्रारेड लेजर का इस्तेमाल करने वाली तकनीक में जुटा है, जिसके जरिए भविष्य में अंतरिक्ष से धरती पर संपर्क करना और आसान हो जाएगा.
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