अरूल्मिगु सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर (तिरुप्परनकुंद्रम) तमिलनाडु के मदुरै जिले में तिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है. यह मंदिर भगवान मुरुगन को समर्पित है और तमिलनाडु के प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिना जाता है. इस मंदिर से जुड़ा विवाद तब सामने आया जब कार्तिगई दीपम त्योहार के दौरान तमिलनाडु सरकार के अधिकारियों ने पहाड़ी पर बने पत्थर के पवित्र दीप स्तंभ पर श्रद्धालुओं को दीप जलाने से रोक दिया.
इस फैसले के बाद श्रद्धालुओं और प्रशासन के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो गई. तमिलनाडु सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि पहाड़ी पर दीप जलाने से उसी पहाड़ी पर स्थित हजरत सुल्तान सिकंदर बादशाह शहीद दरगाह के अनुयायियों की भावनाएं आहत हो सकती हैं. सरकार ने यह भी कहा कि पहाड़ी की चोटी पर दीपम जलाने की कोई ऐतिहासिक या सदियों पुरानी परंपरा नहीं है. इसके बाद मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने फैसला सुनाया कि दीप केवल मंदिर के अंदर ही जलाया जाए.
प्रथा की शुरुआत कब से हुई?
यह परंपरा, जिसे स्थानीय रूप से कार्तिगई दीपम कहा जाता है, करीब 2000 ईसा पूर्व पुरानी मानी जाती है. विद्वानों के अनुसार, इस प्रथा का उल्लेख कई महत्वपूर्ण तमिल साहित्यिक ग्रंथों में देखने और पढ़ने को मिलता है, जो तमिलनाडु राज्य की प्राचीन परंपराओं में से एक है. प्राचीन तमिल संगम साहित्य में तिरुपरनकुंद्रम की पहाड़ी पर दीप जलाने का स्पष्ट उल्लेख मिलता है. संगम काल को 200 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी के बीच माना जाता है. उस समय के कवियों ने इस परंपरा का उल्लेख केवल सामान्य धार्मिक अनुष्ठान के रूप में नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक उत्सव के रूप में प्रस्तुत किया है. प्रसिद्ध कवयित्री अव्वैयार और ‘अकनानूरु’ जैसे संगम काव्य संग्रहों के अन्य रचनाकारों ने अपनी कविताओं में इस पहाड़ी पर जलते दीपों का वर्णन किया है. मान्यताओं के अनुसार, भगवान मुरुगन (सुब्रमण्यम स्वामी) का विवाह देवी देवयानी से इसी पवित्र स्थल पर हुआ था. इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां दीप जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.
ये है मंदिर का इतिहास
अरूल्मिगु सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर का निर्माण करीब 6वीं से 8वीं शताब्दी के बीच पांड्य काल में किया गया था. इसकी धार्मिक मान्यता तमिलनाडु तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे भारत में फैली हुई है. रोजाना हजारों श्रद्धालु भगवान मुरुगन के दर्शन के लिए मंदिर पहुंचते हैं. मान्यताओं के अनुसार, यह आरुपदईवेदु के छह पवित्र निवासों में से एक है. ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर भगवान मुरुगन ने राक्षस सूरपदमन का वध किया और देवयानी से विवाह किया था.
मंदिर की संरचना और वास्तुकला
इस मंदिर का निर्माण एक विशाल चट्टान को काटकर किया गया है. चट्टान पर हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों की सुंदर नक्काशी की गई है. मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें भगवान विष्णु, शिव, गणेश और सूर्य की मूर्तियां और नक्काशी देखने को मिलती हैं. यह मंदिर इसलिए भी खास है क्योंकि यहां भगवान मुरुगन की पूजा से पहले श्रद्धालुओं को भगवान शिव के लिंगम के दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है, जिसे परमेश्वरार कहा जाता है.
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