दुनिया में कई ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने बहुत छोटी सी जगह से बड़ी मंजिल को हासिल किया है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने वाले हैं, जो जासूस के बाद सीधे देश के राष्ट्रपति बने हैं. जी हां आपने सही सोचा है. आज हम रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की जिंदगी के बारे में आपको बताएंगे. 

पुतिन का बचपन 

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बात करने से पहले उनके बचपन की बात करना जरूरी है. दरअसल व्लादिमीर के पिता सोवियत संघ की खुफिया पुलिस में थे. ये भी एक कारण है कि अपने पिता की नौकरी की वजह से ही पुतिन स्कूल के दिनों से ही सोवियत रूस की खुफिया एजेंसी में जाना चाहते थे. एक बार तो उन्होंने स्कूल के दिनों में ही लेनिनग्राद के लोकल केजीबी दफ्तर में अपनी सेवा ऑफर की थी, लेकिन तब वहां उन्हें बताया गया कि इसके लिए उन्हें पहले या तो सेना ज्वॉइन करनी पड़ेगी या कम से कम ग्रेजुएशन करना पड़ेगा.

कानून की पढ़ाई

पुतिन ने लेनिगग्राद स्टेट यूनिवर्सिटी से ही कानून की पढ़ाई की थी. लेकिन उन्होंने ये कानून की पढ़ाई कम और केजीबी का एक डोमेस्टिक असाइनमेंट ज्यादा जान पड़ता है. जानकारी के मुताबिक क्योंकि पढ़ाई के साथ उन्हें इस स्टेट यूनिवर्सिटी में आने वाले विदेशी छात्रों और प्रोफेसरों पर निगाह रखने का काम भी दिया गया था. ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने कब केजीबी ज्वॉइन की थी, इसकी कोई जानकारी नहीं है. लेकिन केजीबी की विदेश सेवा के बारे में थोड़ी जानकारी मिलती है.

आगे की पढ़ाई

पुतिन ने 30-31 साल की उम्र में Red Banner इंस्टीट्यूट में फॉरेन इंटेलीजेंस ऑफिसर्स के लिए दाखिला लिया था. यहां से पास होने के बाद उन्हें 1985 में कम्युनिस्ट कंट्रेल वाले ईस्ट जर्मनी के ड्रेसडेन में नियुक्ति मिली थी. इस समय तक उनकी उम्र लगभग 33 साल हो चुकी थी. जानकारी के मुताबिक ड्रेसडेन में उन्हें एक विला दिया गया था. वहां केजीबी में उनके पद या उनका क्या काम था, इसकी कोई जानकारी नहीं मिलती है. 

खुफिया नाम

व्लादिमीर पुतिन के जासूसी से जुड़े ज्यादा साक्ष्य नहीं मिलते हैं. हां लेकिन कुछ जानकारियों के मुताबिक 6 केजीबी साथियों में एक व्लादिमीर उसोल्तसेव ने व्लादिमीर पुतिन को पहला निकनेम वोलोद्या दिया था. इसका मलतब होता है छोटा. इसके अलावा ‘प्लाटोव’ और ‘एडामोव’ पुतिन के अन्य खुफिया नाम थे. जानकारी के मुताबिक शुरूआती दिनों में पुतिन बेहद सादगी पसंद इंसान थे. 

1989 की घटना

9-नवंबर-1989 को बर्लिन की दीवार गिरने के बाद पुतिन के जीवन में बड़ी घटना हुई थी. दरअसल पुतिन और उनके साथियों को आभास तो हो गया था कि सोवियत संघ का पतन हो रहा है, लेकिन ये इतनी तेजी से होगा इसका अंदाजा उन्हें बिल्कुल नहीं था. जानकारी के मुताबिक इसी घटनाक्रम में खुफिया काम में लगे तमाम एजेंट्स भाग खड़े गए थे. वहीं कुछ ने आत्महत्याएं भी की थी. इसके अलावा कुछ को मार दिया गया तो कुछ पश्चिमी देशों के साथ जाकर मिल गए थे और सोवियत संघ के महत्वपूर्ण दस्तावेज सौंप दिए थे. लेकिन ड्रेसडेन में पुतिन महज कुछ साथियों के साथ अंत तक डटे हुए थे.

वहीं बर्लिन की दीवार गिरने के बाद एंटी-कम्युनिस्ट और एंटी-केजीबी लोगों द्वारा जो जश्न और प्रदर्शनों का दौर शुरू हुआ था, वह कुछ ही दिनों में ड्रेसडेन में केजीबी विला तक भी पहुंच गया था. 1989 की दिसंबर में जैसे-तैसे पुतिन ने अपने आपको बचाया था. जानकारी के मुताबिक उन्होंने जब सबसे पास सोवियत मिलिट्री कमांड से मदद मांगी थी, तो वहां से कोई भी मदद देने से इंकार कर दिया गया था. जवाब में ये कहा गया था कि जब तक मॉस्को से ऑर्डर नहीं मिलेंगे, तब तक मिलिट्री-कमांड कोई मदद नहीं कर सकती है. वहीं मॉस्को खामोश हो गया है.

ड्राइवर बनने की मजबूरी 

सोवियत संघ के टूटने के बाद पुतिन अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो गए थे. जानकारी के मुताबिक एक बार उन्होंने अपने कुछ करीबी सहयोगियों से कहा था कि उन्हें नहीं पता कि नए रूस में वे क्या करेंगे. उन दिनों पुतिन ने टैक्सी ड्राइवर बनकर दिन काटने का फैसला भी किया था. जब फरवरी 1990 में पुतिन वापस लौट आए थे. लेकिन तब तक सोवियत संघ की जगह नया रूस जन्म ले चुका था. वहीं देश में राष्ट्रवाद की लहर चल रही थी. 

राष्ट्रपति बनने की कहानी

व्लादिमीर पुतिन केजीबी छोड़कर राजनीति में तो आए थे. लेकिन उनके अंदर से कभी केजीबी नहीं निकला था. सेंट पीटर्सबर्ग में छः साल तक महत्वपूर्ण पदों को संभालते हुए पुतिन ने हमेशा विदेशी-संबंध वाले विभाग ही संभाले थे. 31-दिसंबर-1999 में रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने स्टेट टेलीविज़न पर दुख और भरे गले से इस्तीफे की घोषणा की थी. इसके बाद पुतिन सोवियत रूस के कार्यवाहक राष्ट्रपति के तौर पर पद संभाला. इसके बाद 26 मार्च 2000 को पुतिन ने पहली बार राष्ट्रपति का चुनाव जीता था. वहीं मार्च 2004 में पुतिन दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए. उन्होंने 70 फीसदी वोटों से जीत हासिल की थी. इस तरह से उन्होंने अभी तक अपना खुद का और रूस का एक नया इतिहास लिखा है. 

 

ये भी पढ़ें: इस देश में वेतन के रूप में मिलता था लहसुन, जानें इसके पीछे का कारण