आपको कोरोना वायरस की एक छोटी सी क्रोनोलॉजी समझाने की कोशिश करते हैं. 17 नवंबर, 2019 को चीन के वुहान में कोरोना का पहला मामला सामने आता है. इसके बाद कोरोना पहुंचता है अमेरिका. वहां 20 जनवरी, 2020 को पहला कोरोना पॉजिटिव पेशेंट सामने आता है. भारत में पहला कोरोना पॉजिटिव पेशेंट 30 जनवरी, 2020 को सामने आता है. इसके अगले ही दिन इटली और स्पेन दोनों ही जगहों पर एक-एक कोरोना पॉजिटिव केस होने की जानकारी सामने आ जाती है.

अब आज की तारीख ले लीजिए. आज की तारीख में पूरी दुनिया में करीब 11 लाख लोग कोरोना पॉजिटिव हैं. करीब 60,000 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब ढाई लाख लोग ठीक होकर अपने-अपने घर जा चुके हैं. अगर देश के हिसाब से बात करें तो आज की तारीख में सबसे ज्यादा मौतें इटली में हुई हैं, जहां ये आंकड़ा करीब 15,000 है. अमेरिका में सात हजार, स्पेन में 11 हजार, चीन में करीब साढ़े तीन हजार और भारत में अभी तक इन मौतों का आंकड़ा है 70.

इस क्रोनोलॉजी के हिसाब से ये एक तथ्य है कि इटली और स्पेन में कोरोना भारत के बाद पहुंचा है, जबकि अमेरिका में कोरोना भारत से पहले. लेकिन इटली और स्पेन के अलावा अमेरिका ही ऐसा देश है, जो इस महामारी से सबसे ज्यादा पीड़ित हैं. जबकि डर ये था कि अगर कम्युनिटी ट्रांसमिशन होने लगे, तो सबसे ज्यादा खतरा भारत को होगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. भारत में कोरोना से पीड़ित मरीजों की संख्या और कोरोना की वजह से हुई मौतें और दूसरे देशों की तुलना में बेहद कम हैं. लेकिन ये हुआ कैसे, जबकि इटली और स्पेन की स्वास्थ्य सुविधाएं भारत की तुलना में कई गुनी अच्छी हैं.

मोटा-मोटी इसकी दो तीन बड़ी वजहें हैं. पहली वजह तो ये है कि अमेरिका, इटली और स्पेन की तुलला में भारत में युवाओं की आबादी ज्यादा है. जबकि अब ये साबित हो चुका है कि कोरोना का सबसे ज्यादा अटैक उम्रदराज लोगों पर हो रहा है. लिहाजा भारत में इसका प्रकोप तुलनात्मक रूप से कम हुआ. दूसरी और सबसे बड़ी वजह है जांच का तरीका और जांच की संख्या. कोरोना के मामले सामने आने के बाद इटली, स्पेन और अमेरिका ने जांच की संख्या बढ़ा दी. और जैसे-जैसे जांच की संख्या बढ़ती गई, कोरोना पॉजिटिव की संख्या भी बढ़ती गई. भारत में भी यही हुआ. जैसे-जैसे जांच की संख्या बढ़ी, कोरोना पॉजिटिव की संख्या बढ़ी. लेकिन भारत में उस बड़े पैमाने पर जांच ही नहीं हुई, लिहाजा संख्या तुलनात्मक रूप से कम ही रही. अब जैसे-जैसे जांच का दायरा बढ़ता जा रहा है, कोरोना पीड़ितों की संख्या और कोरोना से मरने वालों की संख्या, दोनों में इजाफा होता जा रहा है.

और इसी बात का डर भी है. कोरोना का कम्युनिटी ट्रांसमिशन न हो सके, इसलिए भारत में लॉकडाउन किया गया. उम्मीद जताई गई कि लॉकडाउन की वजह से कम से कम 62 फीसदी तक कोरोना के ट्रांसमिशन को रोका जा सकता है. लेकिन तबलीगी जमात के कुछ लोगों की बेवकूफी ने सारे किए कराए पर पानी फेर दिया. वो देश के अलग-अलग राज्यों में पहुंचे और अचानक से कोरोना पॉजिटिव की संख्या बढ़ने लगी. जबकि दुनिया इस बात की गवाह है कि इटली और स्पेन में भी लॉकडाउन हुआ था, लेकिन वहां पर जांच लगातार जारी रही और संख्या लगातार बढ़ती रही. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भी बार-बार ना-नुकुर करते-करते लॉकडाउन का अधिकार वहां के राज्यों पर छोड़ दिया. लेकिन जांच लगातार जारी रही और वहां भी संख्या बढ़ती रही.

अब जैसे हालात बन रहे हैं, उसके आधार पर ये दावा किया जा रहा है कि 15 अप्रैल को लॉकडाउन खत्म हो जाएगा. हालांकि लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी कुछ पाबंदियां रहेंगी. लेकिन फिर भी लॉकडाउन खुलने के 15 दिनों के अंदर कोरोना पॉजिटिव की संख्या में अचानक से इजाफा होगा. ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि कोरोना के लक्षण सामने आने में 10 से 14 दिनों का वक्त लग रहा है. और 15 अप्रैल को लॉकडाउन खुलने के बाद अप्रैल में महज 15 दिन ही बचेंगे. इसलिए अप्रैल के महीने में मरीजों की संख्या बढ़ने की पूरी पूरी आशंका है. इसके अलावा सरकारी तैयारियां भी इस बात का इशारा कर रही हैं कि वो थोड़े मुश्किल हालात का सामना करने के लिए तैयार हो रही हैं. अब सरकार की ओर से कोरोना के हॉट स्पॉट बने सेंटरों पर ज्यादा जांच की जा रही है और उसमें पॉजिटिव लोग पाए जा रहे हैं. भारत ने पहले खुद के लिए करीब 10 लाख सेरोलॉजिकल टेस्ट किट ऑर्डर किया था और अब उनकी संख्या बढ़ाकर 50 लाख कर दी गई है. 40,000 वेंटिलेटर के ऑर्डर दिए जा चुके हैं और खराब पड़े वेंटिलेटरों को इस्तेमाल के लिए तैयार किया जा रहा है. ये सारी तैयारियां बता रहीं है कि सरकार आने वाले वक्त में चुनौतियों का सामना करने जा रही है.

(फाइल फोटो)

लेकिन एक और चीज है, जो हमारे पक्ष में है. और वो ये है कि हमारे यहां स्थितियां चाहे जितनी भी खराब होंगी, हम यूरोपियन देशों और अमेरिका से बेहतर स्थिति में ही होंगे. हमारे यहां हालात उतने खराब नहीं होंगे, क्योंकि हमने वक्त रहते लॉकडाउन किया है और हमारी आबादी में 65 फीसदी युवा हैं, जबकि इटली जैसे देश के साथ स्थितियां उलट हैं. न तो इटली ने एक साथ लॉकडाउन किया और न ही इटली में युवाओं की आबादी है, इसलिए उम्मीद है कि हम थोड़े से परेशान होंगे, लेकिन उतने नहीं जितना अमेरिका, इटली और स्पेन हो रहा है. रही बात चीन की, तो किसी को अब भी भरोसा नहीं हो रहा है कि उसने प्रभावित मरीजों और मरने वालों का जो आंकड़ा बताया है, उसमें सच्चाई कितनी है.