राजस्थान में सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी बीजेपी के बीच फोन टैपिंग को लेकर सियासत चल रही है. बीजेपी कह रही है कि अशोक गहलोत सरकार ने अवैध तरीके से फोन टैपिंग करवाई है, वहीं गहलोत सरकार का दावा है कि बीजेपी ने राजस्थान में कांग्रेस की सरकार को गिराने की कोशिश की है. इस फोन टैपिंग की सियासत से राजस्थान का क्या होगा, नहीं पता. लेकिन करीब 47 साल पहले अमेरिका में हुई एक फोन टैपिंग की वजह से अमेरिका के राष्ट्रपति तक को इस्तीफा देना पड़ा था. इस पूरे मसले को दुनिया वाटरगेट कांड के नाम से जानती है.
साल था 1969. 20 जनवरी को रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार रिचर्ड निक्सन अमेरिका के राष्ट्रपति बने. शुरुआत के दो-ढाई साल तक सबकुछ ठीक था. आखिरी साल फिर से राष्ट्रपति के चुनाव का था. निक्सन अपनी तैयारी कर रहे थे, लेकिन उन्हें ये भी पता करना था कि उनकी प्रतिद्वंद्वी डेमोक्रेटिक पार्टी की तैयारियां क्या हैं? इसके लिए उन्होंने अपनी ताकत का इस्तेमाल किया. कुछ लोगों को डेमोक्रेटिक पार्टी के नेशनल कमेटी के ऑफिस यानि कि वॉटरगेट हॉटेल कॉम्प्लेक्स की जासूसी का काम सौंप दिया. जासूसों ने उस कॉम्प्लेक्स में रिकॉर्डिंग डिवाइस लगा दी, ताकि उनकी बातचीत सुनी जा सके. सब ठीक चल रहा था कि अचानक रिकॉर्डिंग डिवाइस ने काम करना बंद कर दिया.
फिर 17 जून, 1972 की रात को पांच लोगों ने फिर से उस बिल्डिंग में घुसने की कोशिश की, ताकि रिकॉर्डिंग डिवाइस ठीक की जा सके. अभी वो तारों के साथ छेड़खानी कर ही रहे थे कि पुलिस पहुंच गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. अगले दिन अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट में इसकी खबर छपी. खबर की तफ्तीश करने वाले दो पत्रकार थे...बॉब वुडवर्ड और कार्ल बर्नस्टीन. उनकी खबर का एक सोर्स था, जिसने अपनी पहचान बताई दी डीप थ्रोट. डीप थ्रोट 1972 में अमेरिका में रिलीज हुई एक अश्लील फिल्म थी, जो उस वक्त खूब चर्चित हो रही थी. बाद में साल 2005 में ये बात पता चली थी कि डीप थ्रोट कोई और नहीं, बल्कि FBI के डिप्टी डायरेक्टर विलियम मार्क फैल्ट थे.
तो डीप थ्रोट बॉब वुडवर्ड और कार्ल बर्नस्टीन को खुफिया जानकारियां देता जाता और अखबार उसे छापता जाता. जैसे-जैसे मामला आगे बढ़ता जा रहा था, एक-एक करके सत्ताधारी रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं के नाम सामने आ रहे थे. लेकिन निक्सन तक आंच नहीं पहुंच रही थी. मामला सिनेट में पहुंच गया, जहां इसकी सुनवाई होनी थी. मई, 1973 में केस सिनेट में शुरु हुआ. इस मामले की जांच के लिए और दोषियों को सजा दिलवाने के लिए हॉवर्ड के लॉ प्रोफेसर अर्चिबाल्ड कॉक्स को वकील के तौर पर नियुक्त किया गया. लेकिन जब निक्सन को लगा कि वो खुद फंस जाएंगे, तो उन्होंने अपने करीबियों को इस्तीफा देने के लिए मज़बूर किया.
वहीं अर्चिबाल्ड कॉक्स की तफ्तीश की आंच निक्सन तक भी पहुंच रही थी. तो निक्सन ने अपने अटॉर्नी जनरल रिचर्डसन से कहा कि वो कॉक्स को हटा दें. रिचर्डसन ने इन्कार कर दिया और खुद इस्तीफा दे दिया. फिर निक्सन ने डिप्टी अटॉर्नी जनरल विलियम रकलहॉस को कॉक्स को हटाने को कहा तो रकलहॉस ने भी इस्तीफा दे दिया. आखिरकार निक्सन ने सॉलिसिटर जनरल रॉबर्ट बॉर्क को ये काम सौंपा और बॉर्क ने ये काम कर दिया. नए वकील आए लिओन जोर्सकी.
इस बीच अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव हुए. निक्सन ने खुद को पाक साफ बताया. कहा कि विपक्ष साजिश कर रहा है. लोगों ने भरोसा भी कर लिया और निक्सन दोबारा राष्ट्रपति बन गए. लेकिन लंबे समय तक बने नहीं रह पाए, क्योंकि उन्होंने वाटरगेट कांड की जांच के लिए जिए नए वकील लिओन जोर्सकी को नियुक्त किया था, वो कॉक्स से भी एक कदम आगे निकले. सारे रिकॉर्डेड टेप को रिलीज़ करने का नोटिस भेज दिया. और फिर निक्सन फंस गए.
30 अक्टूबर, 1973 को निक्सन के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया. कोर्ट के काम में दखल देने, राष्ट्रपति की शक्तियों का दुरुपयोग करने और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के सामने गवाही देने न आने के आरोप उनपर तय किए गए. 6 फरवरी, 1974 से महाभियोग पर सुनवाई शुरू हो गई. अब उनके सामने कोई रास्ता नहीं था. 8 अगस्त, 1973 को वो टीवी पर आए. अपनी बात रखी और फिर इस्तीफा दे दिया. अमेरिका के इतिहास में ये अब तक का पहला मामला था, जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने पद पर रहने के दौरान ही इस्तीफा दे दिया था.
अगर भारत में भी इतिहास पर थोड़ी नज़र दौड़ाएंगे तो ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे. सबसे बड़ा उदाहरण है कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे रामकृष्ण हेगड़े का. साल था 1988. केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी और राज्य में गैर कांग्रेसी रामकृष्ण हेगड़े की. टेलीकॉम मिनिस्टर थे वीर बहादुर सिंह. जनता पार्टी के सांसद मधु दंडवते और टीडीपी के सांसद सी. माधव रेड्डी ने टेलिकॉम मिनिस्टर से नेताओं की फोन टैपिंग के मामले में सवाल पूछा. वीर बहादुर सिंह ने संसद में जवाब दिया. बताया कि कर्नाटक पुलिस के डीआईजी ने कम से कम 50 उद्योगपतियों और नेताओं के फोन टैप किए थे और ये सब वो लोग थे, जो तब के सीएम रामकृष्ण हेगड़े की मुखालफत करते थे.
अभी राकृष्ण हेगड़े कुछ कहते उससे पहले ही एचडी देवगौड़ा और अजित सिंह के बातचीत की पूरी ट्रांसक्रिप्ट अखबारों में छप गई. सुब्रमण्यन स्वामी ने तो लेटर जारी कर दिया, जिसमें इंटेलिजेंस के एक अधिकारी ने कर्नाटक के कुछ नेताओं, कारोबारियों और पत्रकारों के फोन टैप करने की बात की थी. अब सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही हेगड़े का इस्तीफा मांगने लगे थे. हेगड़े के पास कोई विकल्प भी नहीं था. मज़बूरी में वो दिल्ली आए. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. 10 अगस्त, 1988 को बेंगलुरु लौटे और फिर गवर्नर अशोकनाथ बनर्जी को अपना इस्तीफा सौंप दिया.