कर्नाटक में बड़ी जीत के बाद कांग्रेस में सीएम पद को लेकर चल रही खींचतान अब खत्म हो गई है. सूत्रों के मुताबिक पूर्व सीएम सिद्धारमैया को ही मुख्यमंत्री पद दिया जा रहा है, जिसके बाद वो 18 मई को सीएम पद की शपथ ले सकते हैं. ये कांग्रेस के संकट मोचक डीके शिवकुमार के लिए एक बड़े झटके की तरह है, जो लगातार अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे. अब सवाल ये है कि आखिर वो कौन से फैक्टर रहे जो डीके शिवकुमार के खिलाफ गए और सिद्धारमैया ने कैसे उनका खेल बिगाड़ दिया. 


ईडी-सीबीआई के मामले
डीके शिवकुमार कर्नाटक के सबसे अमीर नेताओं में शामिल हैं, उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और भ्रष्टाचार के कई मामले दर्ज हैं. मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूछताछ के बाद डीके को गिरफ्तार भी किया गया था, जिसके बाद वो करीब दो महीने तक जेल में रहे. पिछले ही महीने उन्हें हाईकोर्ट से भी झटका लगा, जब उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया गया जिसमें सीबीआई जांच को चुनौती दी गई थी. ईडी उन्हें लगातार दिल्ली पूछताछ के लिए बुलाती रही है, चुनाव से पहले कोर्ट से उन्हें राहत मिली थी. ये सभी मामले भी डीके के सीएम बनने के रास्ते में रोड़ा बने, क्योंकि कांग्रेस को इस बात का खतरा था कि डीके के सीएम बनने के बाद उन पर केंद्रीय एजेंसियों का शिकंजा और कस सकता है. जिसका पार्टी को आने वाले चुनावों में नुकसान झेलना पड़ सकता था. 


सीमित जनाधार वाले नेता
डीके शिवकुमार का मुख्यमंत्री की रेस में पिछड़ने का दूसरा बड़ा कारण ये था कि उनका सीमित जनाधार है. क्योंकि डीके वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं, ऐसे में उनकी इस समुदाय पर काफी अच्छी पकड़ है. खासतौर पर ओल्ड मैसूर में डीके का बड़ा जनाधार है, लेकिन इसके अलावा बाकी जिलों में डीके का जलवा नहीं दिखता है. बाकी किसी भी समुदाय का समर्थन डीके के पक्ष में नहीं है. वहीं उन्हें रेस में पछाड़ने वाले सिद्धारमैया का जनाधार लगभग सभी तबको में है, खासतौर पर वो दलितों और पिछड़ों के बीच काफी हिट हैं. 


विधायकों का समर्थन
कर्नाटक में भले ही डीके शिवकुमार ने पार्टी के लिए काफी मेहनत की हो, लेकिन जहां तक विधायकों पर पकड़ की बात है, उसमें वो काफी पीछे हैं. बताया गया कि डीके शिवकुमार के पास करीब 40 विधायकों का ही समर्थन था. ये भी एक बड़ा कारण था कि उनका खेल बिगड़ गया. क्योंकि राहुल गांधी ने पहले ही ये बात कही थी कि जिस नेता के समर्थन में विधायक होंगे, उसे ही पद दिया जाएगा. सिद्धारमैया विधायकों को अपने पाले में करने के माहिर माने जाते हैं, 2013 में भी उन्होंने खरगे को ऐसे ही मात दी थी. इस बार भी सिद्धारमैया के पास करीब 90 विधायकों का समर्थन था. 


वरिष्ठता के मामले में भी पिछड़े
डीके शिवकुमार का राजनीतिक करियर भी उनके सीएम नहीं बनने के बीच आया. भले ही वो देवेगौड़ा परिवार को हर बार मात देने में कामयाब रहे, लेकिन उनके प्रतिद्वंदी सिद्धारमैया राजनीति के अनुभव में उनसे एक कदम आगे खड़े हैं. साल 2004 में ही कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार में सिद्धारमैया को डिप्टी सीएम बना दिया गया. इससे पहले उन्होंने जेडीएस के लिए एक बड़े नेता के तौर पर काम किया. वहीं कांग्रेस में शामिल होने के बाद उनकी अहिंदा यानी मुस्लिम, दलित और पिछड़े वर्ग की पॉलिटिक्स काफी पॉपुलर रही. इसके बाद सिद्धारमैया कर्नाटक के दूसरे ऐसे सीएम बने जिसने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया. यानी कुल मिलाकर सरकार चलाने का अनुभव और राजनीतिक दांव-पेंच के मामले में डीके शिवकुमार पिछड़े नजर आए.