कोरोना. फिलवक्त दुनिया का सबसे बड़ा संकट. इतना बड़ा कि कमोबेश दुनिया के सारे देश इससे प्रभावित हैं. और इस बीमारी के सामने आने के साथ ही इससे बचाव की कोशिश की जा रही है. अब भी इलाज नहीं खोजा जा सका है. लेकिन डॉक्टरों के पास इससे बचाव की कुछ तरकीबें हैं. और इन तरकीबों के ईर्द-गिर्द घूम रहे हैं तीन शब्द, जिसे पूरी दुनिया इस्तेमाल कर रही है. पहला है क्वॉरंटीन, दूसरा है आइसोलेशन और तीसरा है सोशल डिस्टेंसिंग. इन तीनों शब्दों को कोरोना के संदर्भ में इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन इन तीनों के बीच बड़ा अंतर है. वो क्या है, हम आपको बताने की कोशिश कर रहे हैं.
1. क्वॉरंटीन क्वॉरंटीन शब्द की उत्पत्ति हुई है इटली से. इसका शाब्दिक अर्थ होता है 40 दिन. इस शब्दा का सबसे पहले इस्तेमाल 14वीं शताब्दी में किया गया था. तब एशिया और यूरोप में प्लेग की वजह से करीब 30 फीसदी आबादी की मौत हो गई थी. 1348 से 1359 के बीच करोड़ों लोग प्लेग की वजह से मर गए थे. इसके बाद अलग-अलग देशों ने दूसरे देश से आने वाले जहाजों और उस पर सवार लोगों पर 30 दिनों की रोक लगा दी. जहाज समंदर के किनारे आते तो थे, लेकिन उन्हें शहर में दाखिल नहीं होने दिया जाता था. उस वक्त इस पीरियड को कहा जाता था ट्रेनटाइन. लेकिन इसके करीब 80 साल बाद ये पता चला कि प्लेग से बीमार किसी आदमी की मौत करीब 37 दिनों में हो जाती है. तो फिर इस पीरियड को बढ़ाकर 40 दिन कर दिया गया. और इसे कहा गया क्वॉरंटीन. यहीं से ये शब्द चलन में आया. 40 दिनों की इस रोक से प्लेग के रोकथाम में काफी मदद मिली थी.
लेकिन अब इस क्वॉरंटीन को कोरोना से जोड़ा गया है. और ऐसे में क्वॉरंटीन का मतलब ये है कि अगर किसी भी शख्स में कोरोना के लक्षण दिख रहे हैं या फिर वो शख्स किसी कोरोना पीड़ित से सीधे संपर्क में आया है, तो उसे अस्पताल के अलग वॉर्ड में एडमिट किया जाता है. भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन और हॉन्ग-कॉन्ग जैसे देशों में क्वॉरंटीन को लेकर अलग-अलग कानून भी बने हैं. जिस किसी को क्वॉरंटीन किया जाता है, उसका हर रोज मेडिकल चेकअप होता है, उसका हेल्थ बुलेटिन जारी होता है. इसके अलावा उस आदमी से हॉस्पिटल के स्टाफ के अलावा और कोई नहीं मिल सकता है. क्वॉरंटीन किए गए शख्स को हर वक्त मास्क लगाना ज़रूरी होता है. उसके कपड़े, बर्तन सब अलग होते हैं, बेड, तौलिया, तकिया सब अलग होता है और कोई दूसरा उसका इस्तेमाल नहीं कर सकता है.
2. आइसोलेशन आइसोलेशन का मतलब है अलगाव या एकांतवास. खुद को परिवार और समाज से अलग-थलग कर लेना. कोरोना के लिहाज से इस शब्द को यूं समझ सकते हैं कि मान लीजिए आपने हाल ही में किसी दूसरे देश की यात्रा की है. आप वहां से लौटे, तो आपमें कोरोना के लक्षण हों या न हों, आप खुद को अपने परिवार से और समाज से अलग-थलग कर लीजिए. खुद को अकेले में कैद कर लीजिए. ये काम अगर आप अपने घर में करें तो ज्यादा बेहतर है. इसे सेल्फ क्वॉरंटीन भी कहा जा रहा है.
अगर आपने खुद को अपने घर में आइसोलेट कर रखा है, तो इस बात का ध्यान रखिए कि आपके कमरे में कोई न जाए. अगर देखभाल की ज़रूरत हो तो सिर्फ एक आदमी ही देखभाल करे. और उस आदमी को भी पूरे एहतियात बरतने चाहिए. हाथ में ग्लव्स और बिना मास्क लगाए किसी को भी अपने पास न फटकने दें. कोरोना के लक्षण 14 दिन में नजर आते हैं तो आइसोलेशन में खुद को कम से कम 14 दिनों तक हर हाल में रखें. आप जिस कमरे में हों, उसमें अटैच बाथरूम हो, जिसका इस्तेमाल आपके अलावा और कोई न करे. उस बाथरूम की भी हर रोज साफ-सफाई हो और कोशिश करें कि ये साफ-सफाई आप खुद करें. अगर आपने विदेश यात्रा नहीं भी की है और आपको इस बात की आशंका है कि आप किसी कोरोना पीड़ित शख्स के संपर्क में आ गए हैं, तो भी आप खुद को आइसोलेट कर सकते हैं. इसके अलावा अगर आपको सर्दी-जुकाम जैसे लक्षण दिख रहे हैं तो भी आप खुद को आइसोलेट कर सकते हैं. 14 दिनों के बाद अगर आप आइसोलेशन से बाहर निकलते हैं तब भी आपको सावधानी रखनी ही होगी.
3. सोशल डिस्टेंसिंग कोरोना के सामने आने के बाद ये तीसरा ऐसा शब्द है, जो बेहद चर्चा में रहा है. पीएम मोदी के देश में लॉकडाउन के ऐलान के बाद इस शब्द की चर्चा और भी ज्यादा बढ़ गई है. और जैसा कि इस शब्द से ही जाहिर है कि इसका हिंदी मतलब है सामाजिक दूरी या सामाजिक अलगाव. और ये सामाजिक अलगाव हर आदमी के लिए है. किसी को कोरोना हो या न हो, किसी को सर्दी-जुकाम हो या न हो, किसी को कोई बीमारी हो या न हो, कोरोना के प्रकोप के दौरान हर एक शख्स को सोशल डिस्टेंसिंग की सलाह दी जा रही है और इसी के लिए लॉकडाउन जैसा सख्त फैसला लेना पड़ा है.
सोशल डिस्टेंसिंग में आपको हर उस जगह पर जाने से बचने की कोशिश करनी चाहिए, जहां लोग इकट्ठे होते हों. स्कूल, कॉलेज, लाइब्रेरी, प्लेग्राउंड, पार्क, मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा, मॉल, सिनेमाघर, थियेटर. कोई भी जगह, जहां लोगों के इकट्ठा होने की उम्मीद है, वहां नहीं जाना होता है. कोरोना का वायरस कोरोना पीड़ित के खांसने या छींकने से दूसरे में भी फैल सकता है. इसलिए सोशल डिस्टेंसिंग की सलाह दी जा रही है, जिसमें आपको बेहद ज़रूरी होने पर दो आदमियों के बीच कम से कम तीन मीटर की दूरी रखने की बात की गई है. आप चाहें बच्चे हों या जवान हो, बीमार हों या सेहतमंद हों, शारीरिक रूप से सक्षम हों या अक्षम हों, आपको कोरोना के इस स्टेज में 21 दिनों की सोशल डिस्टेंसिंग को फॉलो करना ही होगा.