हिंदी सिनेमा में गुरु दत्त का नाम रहेगा. उन्होंने ना सिर्फ एक्टिंग में बल्कि डायरेक्शन में और कोरियोग्राफी में भी अदभुत काम किया. वैसे कम ही लोगों को पता है कि गुरु दत्त का असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था. बेंगलूरु में जन्मे गुरु दत्त का जन्म एक बहुत ही गरीबी परिवार में हुआ. पर्दे पर सबका दिल जीतने वाले गुरु दत्त की जिंदगी में सुख कम ही टिका. वहीं उनकी शादी में उन्हें थोड़ा सा सुकून मिला मगर वो भी थोड़े वक्त तक ही रहा. दरअसल, गुरुदत्त और गीता रॉय की पहली मुलाकात फिल्म 'बाजी' के सेट पर हुई थी. तब तक गीत एक मशहूर सिंगर बन चुकी थीं. उस दौर में गीता एक लंबी सी गाड़ी में बैठकर गुरुदत्त से मिलने उनके माटुंगा वाले फ्लैट पर आती थी. मशहूर होने के बाद भी वो इतनी सरल इतनी थीं कि गुरु दत्त के घर की रसोई में सब्जी काटने बैठ जाती थीं.
उस समय राज खोसला, गुरु दत्त के असिस्टेंट थे. उन्हें भी गाने का खूब शौक था। जब गुरु दत्त के यहां बैठक होती तो गीता रॉय और राज खोसला साथ में गाना गाया करते थे. इतना ही नहीं गुरु दत्त की छोटी बहन ही गीता और गुरु दत्त के लव लेटर्स का आदान-प्रदान किया करती थीं. धीरे-धीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा तो उन्होंने साल 1953 में शादी कर ली. शुरुआत में गीता और गुरु दत्त की जिंदगी बहुत अच्छे से गुज़र रही थी लेकिन तूफान तब आया जब फिल्म 'प्यासा' की शूटिंग के दौरान गुरु दत्त की मुलाकात वहीदा रहमान से हुई. यहीं से गुरु दत्त और गीता के बीच दूरियां और वहीदा के साथ उनकी नजदीकियां बढ़ने लगी. गीता को शक होने लगा और एक दिन गुरु दत्त को एक ख़त मिला जिसमें लिखा था कि- 'तुम्हारे बिना मैं नहीं रह सकती, तुम अगर सच में मुझे प्यार करते हो तो आज शाम साढ़े छह बजे मुझसे मिलने नारीमन प्वॉइंट आ आओ. तुम्हारी वहीदा.'
चिट्ठी पढ़ने के बाद गुरु दत्त ने अपने दोस्त अबरार को चिट्ठी दिखाई तो उन्होंने कहा कि, 'मुझे ऐसा नहीं लगता कि ये चिट्ठी वहीदा ने लिखी है. फिर अबरार बात की तह तक पहुंचने के लिए अपनी कार में बैठ नारीमन प्वॉइंट पहुंचे और उन्होंने अपनी कार सीसीआई के पास एक गली में खड़ी कर दी. अबरार ने वहां देखा कि गुरु दत्त की पत्नी गीता दत्त और उनकी दोस्त एक कार की पिछली सीट पर बैठी किसी को ढूंढ़ रही थीं. पास में एक बिल्डिंग से गुरु दत्त भी ये सब देख रहे थे. जब गुरु दत्त घर पहुंचे तो दोनों के बीच इस बात को लेकर खूब झगड़ा हुआ और बातचीत बंद हो गई. दोनों का झगड़ा इतना बड़ गया कि गीता ने घर छोड़ दिया. उनकी ढाई साल की बेटी थी उससे मिलने से भी वंचित हो गए. बेटी से ना मिल पाने के ग़म में गुरु दत्त ज्यादातर नशे में रहने लगी. आखिरकार गुरु दत्त ने गीता को बोल दिया कि 'मेरी बेटी को भेजो नहीं तो तुम मुझे मरा हुआ देखोगी.' ये सारी बातें गुरु दत्त ने फोन पर गीता से कहीं थी, उस रात अबरार भी उनके साथ थे. अगले दिन जब अबरार गुरु दत्त के घर पहुंचे तब तक गुरु दत्त दुनिया को अलविदा कह चुके थे. उन्होंन बताया कि गुरु दत्त अक्सर मरने के नए-नए तरीकों के बारे में बात करते थे.