भारत में सिनेमा मनोरंजन के साथ-साथ समाज को बदलने और नई सोच फैलाने का एक महत्वपूर्ण जरिया है. इसी वजह से इंडिपेंडेंट फिल्मों का महत्व बहुत बढ़ गया है. ये फिल्में आमतौर पर बड़े बजट की फिल्मों की तरह ग्लैमर या बड़े स्टार कास्ट पर निर्भर नहीं होतीं, लेकिन इनकी कहानियां लोगों से सीधे जुड़ती हैं और उन्हें सोचने पर मजबूर करती हैं.

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इस कड़ी में फिल्म निर्माता प्रकाश झा ने आईएएनएस को दिए इंटरव्यू के दौरान स्वतंत्र सिनेमा की स्थिति और इसे बेहतर बनाने के तरीकों पर अपने विचार साझा किए.

फिल्मों का बजट समान होने चाहिए

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प्रकाश झा ने बताया कि मल्टीप्लेक्स के आने से फिल्मों को दिखाने का प्लेटफॉर्म तो बेहतर हुआ है, लेकिन रिलीज प्रक्रिया में समस्याएं आ गई हैं. उन्होंने कहा, ''छोटे बजट की फिल्म हो या बड़ी, रिलीज की लागत लगभग समान हो जाती है. यही वजह है कि छोटे फिल्म निर्माता अक्सर मल्टीप्लेक्स में अपनी फिल्म को समय पर रिलीज नहीं कर पाते.''

प्रकाश झा खुद भी मल्टीप्लेक्स के मालिक हैं और वे अक्सर इस मुद्दे पर चर्चा करते हैं कि स्वतंत्र फिल्मों को कम खर्च में समय पर रिलीज करने के विकल्प तलाशने चाहिए. उनका मानना है कि व्यावहारिक सोच और सही रणनीति से इंडिपेंडेंट सिनेमा को बढ़ावा दिया जा सकता है.

 

 

प्रकाश झा ने कहा, ''पहले जब मल्टीप्लेक्स नहीं थे, तब भी स्वतंत्र फिल्मों के लिए डिस्ट्रीब्यूटर मिल जाते थे. उस समय ये फिल्में बहुत खास और छोटी ऑडियंस वाली होती थीं, लेकिन डिस्ट्रीब्यूटर उन्हें रिलीज और प्रचार करने के लिए तैयार रहते थे. अब विज्ञापन का खर्च बहुत बढ़ गया है क्योंकि पहले स्थानीय स्तर पर प्रचार किया जा सकता था, जबकि आज का प्रचार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होता है. यही वजह है कि छोटे फिल्म निर्माताओं के लिए अपनी फिल्म का प्रचार करना और दर्शकों तक पहुंचाना मुश्किल हो गया है.''

इंडिपेंडेंट सिनेमा को देता है बढ़ावाउन्होंने डिजिटल कंटेंट की लागत में बढ़ोतरी की भी बात की. प्रकाश झा ने कहा, ''आज फिल्म बनाना महंगा हो गया है, इसलिए स्वतंत्र सिनेमा को बनाए रखने और बढ़ावा देने के लिए व्यावहारिक सोच जरूरी है. स्वतंत्र फिल्में लोगों से सीधे जुड़ती हैं और महत्वपूर्ण मुद्दों को सामने लाती हैं. अगर इन्हें सही प्लेटफॉर्म और आर्थिक मदद मिले, तो फिल्म निर्माता अपनी कहानियों पर ध्यान देकर गुणवत्ता वाली फिल्में बना सकते हैं.''

 

 

पसंद आती हैं बड़े बजट वाली फिल्मेंउन्होंने कहा, ''ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी स्थिति कुछ इसी तरह है. आम तौर पर इसी प्लेटफॉर्म पर व्यावसायिक और बड़े बजट वाली फिल्में ज्यादा पसंद की जाती हैं. स्वतंत्र फिल्में अक्सर पीछे रह जाती हैं. बड़े डिजिटल प्लेटफॉर्म को छोटे और खास फिल्म निर्माताओं को मौका देना चाहिए. अगर उन्हें कम कीमत पर फिल्मों को खरीदने और दिखाने का विकल्प दिया जाए, तो इससे फिल्म निर्माता नई फिल्में बनाने के लिए प्रेरित होंगे और इंडिपेंडेंट सिनेमा को सही मंच मिलेगा.''