नई दिल्ली: अभिनेत्री मल्लिका शेरावत का कहना है कि वह ऐसे विश्व को देखने की कामना करती हैं, जिसमें महिलाएं डर से आजाद रहें और उनका जीवन बंधनमुक्त हो. साल 2012 के निर्भया कांड मामले के आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा मृत्यु दंड की पुष्टि के एक दिन बाद मल्लिका ने ट्विटर पर एक भावुक पोस्ट जारी कर समाज में महिलाओं के सामने पेश आने वाली चुनौतियों का जिक्र किया. सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड की पीड़िता निर्भया का जिक्र करते हुए मल्लिका ने लिखा, "उसने महिलाओं के लिए बनाए गए नियमों से खुद को आजाद करने के लिए कड़ी मेहनत की. उसके परिजनों ने हर कदम पर उसका साथ दिया लेकिन जिन्होंने उसके साथ यह हिंसा की, उन्होंने नैतिकता और रात में घर से बाहर रहने के उसके अधिकार पर सवाल खड़े कर दिए." ये भी पढ़ें: निर्भया मामला में SC के फैसले को बॉलीवुड ने सराहा, कहा- उसका दर्द हम सभी में जीवित है मल्लिका ने कहा, "कुछ लोगों ने इसके बाद यहां तक कहा कि वह इसी काबिल थी. दोषियों को जिस दिन फांसी दी जाएगी, उसके परिवार की लड़ाई तभी खत्म होगी, लेकिन निर्भया की आत्मा आज मुक्त हो गई." महिला अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली मल्लिका ने उस घटना का भी जिक्र किया, जिसमें 26 लड़कियों को मानव तस्करी से बचाया गया. ये भी पढ़ें: आतंकवादी बेटे के परिवार के संघर्ष की कहानी है MULK हरियाणा की निवासी मल्लिका ने अपने परिवार के सदस्यों के खिलाफ जाकर फिल्म जगत में कदम रखा था. उन्होंने कहा कि घर से भागने के बाद उनके अंदर हिम्मत जागी. मल्लिका ने कहा, "पितृसत्तामक परिवार में रहने से मेरे पास न ही आजादी थी और न ही अधिकार. मैंने कई मुश्किलें झेली क्योंकि मैंने सवाल करने की हिम्मत की और यथास्थिति को चुनौती दी. मुझे जब मौका मिला, तो मैं इतनी तेजी से भागी जितना मेरे पैरों से संभव था. आज मैं अपने दोनों पैरों पर खड़ी हूं और फैसला कर सकती हूं कि मैं अपना जीवन कैसे बिताउंगी." ये भी पढ़ें: कांग्रेसी कार्यकर्ता ने Sacred Games के सीन को लेकर नवाज-सैफ के खिलाफ की शिकायत अभिनेत्री ने कहा कि उनका सफर आसान नहीं रहा. उन्होंने कहा कि विश्व भर में महिलाओं को सामाजिक दबाव तले दबाया जाता है, परिस्थितियों से डराया जाता है. महिलाएं आजाद होना चाहती हैं. मल्लिका ने कहा कि वह महिलाओं की मदद करना चाहती हैं और उन्हें चिंता तथा डर से मुक्त देखना चाहती हैं. उन्होंने आह्वान किया एक ऐसे समाज को बनाने का जिसमें महिलाएं और लड़कियां डर से नहीं, गर्व से जी सकें.