हिंदी फिल्म म्यूजिक की दुनिया में खेमचंद प्रकाश एक ऐसा नाम हैं, जिनकी धुनों ने पुराने दौर के म्यूजिक को नई पहचान दी. वो सिर्फ एक बड़े कंपोज़र नहीं थे, बल्कि ऐसे मेंटर थे जिन्होंने लता मंगेशकर, किशोर कुमार, मन्ना डे, नौशाद और मुकेश जैसे लेजेंड्री आर्टिस्ट्स को शुरुआत का प्लेटफॉर्म दिया. उनकी गाइडेंस और पैशन ने इन सभी की लाइफ बदल दी, लेकिन किस्मत का खेल ये रहा कि वे खुद इन सितारों की उंचाइयों को देख नहीं पाए.

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 'बचपन से संगीत का जुनून'खेमचंद प्रकाश का जन्म 12 दिसंबर 1907 को जयपुर में हुआ. उनके पिता गोवर्धन दास ध्रुपद के जाने-माने गायक और कथक डांसर थे. बचपन से ही खेमचंद म्यूजिक में रम गए थे और उन्होंने अपने पिता से राग, ताल और धुनों की गहराई सीखी. सिर्फ 19 साल की उम्र में वे जयपुर दरबार के गायक बन गए. इसके बाद उन्होंने बीकानेर और नेपाल के दरबारों में भी सिंगर के रूप में काम किया, जहाँ उन्हें शाही संगीत की बारीकियां समझने का मौका मिला.

 'कोलकाता का सफर और फिल्म इंडस्ट्री में पहला कदम'इसके बाद खेमचंद कोलकाता पहुंचे और न्यू थिएटर्स से जुड़ गए. यहाँ उन्होंने मशहूर संगीतकार तिमिर बरन के असिस्टेंट के तौर पर ‘देवदास’ (1935) जैसी फिल्मों में काम किया. इसी दौरान उन्होंने ‘स्ट्रीट सिंगर’ (1938) में एक कॉमिक सॉन्ग भी गाया, जो काफी पॉपुलर हुआ था. कोलकाता के ये साल उनके करियर के लिए फाउंडेशन साबित हुए और उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री के म्यूजिक पैटर्न को करीब से समझा.

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 'मुंबई में नई शुरुआत और सुपरस्टारों को दिया पहला मौका'1939 में खेमचंद मुंबई आए और सुप्रीम पिक्चर्स के लिए ‘मेरी आंखें’ व ‘गाजी सलाउद्दीन’ का म्यूजिक तैयार किया. बाद में वे रणजीत मूवीटोन से जुड़े और ‘दिवाली’, ‘होली’, ‘फरियाद’ और ‘तानसेन’ जैसी फिल्मों में म्यूजिक दिया. इसी दौर में उन्होंने लता मंगेशकर को पहचान दिलाई, किशोर कुमार को पहला गाना गाने का चांस दिया और नौशाद व मन्ना डे जैसे नामों को इंडस्ट्री में एंट्री दी. उस समय खेमचंद एक तरह से टैलेंट फैक्ट्री की तरह थे.

 'एक सदाबहार लीजेंड का जन्म'खेमचंद की सबसे आइकॉनिक फिल्म ‘महल’ (1949) रही. इस फिल्म का गाना ‘आएगा आने वाला’ लता मंगेशकर की लाइफ का टर्निंग पॉइंट बना. ये सॉन्ग इतना हिट हुआ कि लता एकदम से सुपरस्टार बन गई थी. खेमचंद के म्यूजिक ने कई करियर खोले, कई सितारों को दिशा दी.

दुर्भाग्य से 10 अगस्त 1950 को सिर्फ 42 साल की उम्र में लिवर सिरोसिस के कारण खेमचंद प्रकाश का निधन हो गया. वह उन आर्टिस्ट्स की सफलता को नहीं देख पाए, जिन्हें उन्होंने लॉन्च किया था. आज भले ही उनका नाम आम लोग कम सुनते हों, लेकिन म्यूजिक लवर्स के लिए उनकी धुनें और उनकी बनाई विरासत हमेशा खास रहेगी.