कम ही लोग जानते हैं कि सुपरस्टार जीतेंद्र (Jeetendra) का असली नाम रवि कपूर है. जीतेंद्र ने अपनी जिंदगी के शुरुआती 18 साल मुंबई की एक चॉल में गुज़ारे. उनके पिता और अंकल फिल्मों में ज्वैलरी सप्लाई करने का काम किया करते थे. जीतेंद्र जब कॉलेज में थे तब उनके पिता को हार्ट अटैक आया जिसकी वजह से घर की आर्थिक स्थिती खराब होने लगी.

ऐसे में जीतेंद्र ने अपने अंकल से कहा कि आप मुझे प्रोड्यूसर वी. शांताराम से मिलवा दीजिए. जब जीतेंद्र वी शांताराम से मिले तो उन्होंने कहा-'तुम भले ही कोशिश कर लो लेकिन मैं तुम्हें फिल्मों में कोई चांन्स नहीं देने वाला'. कुछ दिनों बाद वी. शांताराम के यहां से ही जीतेंद्र को बुलावा भेजा गया. जीतेंद्र इस बात से खुश थे कि शायद उन्हें कोई अच्छा रोल मिलेगा लेकिन बाद में पता चला कि जिस दिन कोई जूनियर आर्टिस्ट सेट पर नहीं आएगा, उस दिन उन्हें काम मिलेगा.

जीतेंद्र के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था इसी वजह से 150 रुपये महीने पर उन्होंने इस काम के लिए हां कर दी. सेट पर काम करते-करते इन्हीं दिनों जीतेंद्र, वी. शांताराम की नज़रों में आने लगे. साल 1963 में आई फिल्म 'सेहरा' के बाद जब वी. शांताराम ने अपनी अगली फिल्म की शुरुआत की तो उन्होंने स्क्रीन टेस्ट के लिए जीतेंद्र को बुलवाया.

जीतेंद्र हैरान थे क्योंकि फिल्म 'सेहरा' के लिए दिए गए स्क्रीन टेस्ट में उन्होंने 30 टेक दिए फिर भी वो एक डायलॉग ठीक से नहीं बोल पाए थे, इसके बावजूद उन्हें अगली फिल्म के लिए स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया जा रहा था. हालांकि, जीतेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया जिसमें उनका चयन भी हुआ और वो फिल्म थी 'गीत गाया पत्थरों ने'.

वी. शांताराम ने ही उनका नाम रवि कपूर से बदलकर जीतेंद्र रख दिया था. वहीं अब फिल्म तो मिल गई लेकिन शुरुआत के 6 महीने तक उन्हें कोई पैसे नहीं मिले और 6 महीने के बाद उनकी सैलरी 150 रुपये से घटाकर 100 रुपये कर दी गई. जब जीतेंद्र ने इसका कारण पूछा गया तो उन्हें बताया गया कि तुम्हें फिल्मों में ब्रेक दिया जा रहा है, इसके लिए इतनी ही सैलरी मिलेगी. जीतेंद्र ने भी 100 रुपये महीने में इस फिल्म में काम किया और बाद में वो बन गए हिंदी सिनेमा के बहुत बड़े स्टार. यह भी पढ़ेंः

जब Sussanne ने कहा था- Hrithik Roshan के बिना अपनी जिंदगी के बारे में सोच भी नहीं सकती