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भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस लॉन्च होने में देरी का मुख्य कारण क्या है?
सिक्योरिटी एजेंसियों द्वारा शर्तों का पूरा न किया जाना और डेटा सुरक्षा संबंधी मुद्दे।
कंपनियों द्वारा स्पेक्ट्रम की खरीद में देरी।
सरकार और कंपनियों के बीच तकनीकी विवाद।
सिक्योरिटी एजेंसियों द्वारा शर्तों का पूरा न किया जाना और डेटा सुरक्षा संबंधी मुद्दे।
स्पेक्ट्रम प्राइसिंग को लेकर दूरसंचार विभाग और TRAI के बीच सहमति का अभाव।
सरकार ने किन कंपनियों को सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस के लिए प्रोविजनल स्पेक्ट्रम आवंटित किए हैं?
स्टारलिंक, वनवेब और रिलायंस जियो को।
सिर्फ स्टारलिंक को।
सिर्फ जियो और वनवेब को।
स्टारलिंक, वनवेब और रिलायंस जियो को।
केवल उन कंपनियों को जिन्होंने सिक्योरिटी क्लीयरेंस प्राप्त कर लिया है।
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केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के अनुसार, किन कंपनियों को लॉन्च से पहले सिक्योरिटी क्लियरेंस लेना ज़रूरी है?
स्टारलिंक, वनवेब और रिलायंस जियो को।
सिर्फ स्टारलिंक को।
वनवेब और रिलायंस जियो को।
स्टारलिंक, वनवेब और रिलायंस जियो को।
सिर्फ उन कंपनियों को जिन्हें सरकार ने अनुमति दी है।
स्पेक्ट्रम प्राइसिंग को लेकर दूरसंचार विभाग और TRAI के बीच किन मुद्दों पर असहमति है?
स्पेक्ट्रम फीस बढ़ाने और शहरी इलाकों से फीस हटाने पर।
स्पेक्ट्रम फीस बढ़ाने और शहरी इलाकों से फीस हटाने पर।
उपभोक्ताओं के डेटा को भारत में रखने पर।
सिक्योरिटी एजेंसियों के साथ काम करने पर।
उपरोक्त सभी मुद्दों पर।
स्पेक्ट्रम प्राइसिंग को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में अगला कदम क्या होगा?
दूरसंचार विभाग DCC के सामने अपनी बात रखेगा, जिसके बाद DCC तय करेगा कि आगे क्या करना है।
इसे सीधे केंद्रीय कैबिनेट को मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।
दूरसंचार विभाग DCC के सामने अपनी बात रखेगा, जिसके बाद DCC तय करेगा कि आगे क्या करना है।
TRAI सीधे केंद्रीय कैबिनेट से बात करेगा।
कंपनियां सीधे DCC के साथ प्राइसिंग पर चर्चा करेंगी।
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