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महर्षि वशिष्ठजी ने ब्रह्माजी के अनुरोध पर सूर्यवंश का पुरोहित बनने की जिम्मेदारी क्यों स्वीकार की?
उन्हें पता चला कि परमात्मा रघुकुल में मनुष्य रूप में जन्म लेंगे और उन्हें उनकी सेवा करने का अवसर मिलेगा।
उन्हें धन और यश की लालसा थी।
उन्हें लगा कि यह कार्य उनके लिए धार्मिक रूप से हानिकारक होगा।
उन्हें पता चला कि परमात्मा रघुकुल में मनुष्य रूप में जन्म लेंगे और उन्हें उनकी सेवा करने का अवसर मिलेगा।
ब्रह्माजी के दबाव में आकर उन्होंने यह जिम्मेदारी स्वीकार की।
वशिष्ठजी के अनुसार, जप, तप, नियम, योग, ज्ञान, दया और तीर्थस्नान जैसे साधनों का अंतिम उद्देश्य क्या है?
मनुष्य के हृदय में भगवान के चरणों के प्रति प्रेम जगाना।
धन और समृद्धि प्राप्त करना।
मृत्यु के बाद स्वर्ग जाना।
मनुष्य के हृदय में भगवान के चरणों के प्रति प्रेम जगाना।
समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करना।
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वशिष्ठजी के अनुसार, सच्चा ज्ञानी और पुण्यवान व्यक्ति कौन है?
जिसके हृदय में भगवान के चरणों के प्रति सच्चा प्रेम और श्रद्धा हो।
जो बहुत अधिक धनवान हो।
जो हमेशा दूसरों पर शासन करे।
जिसके हृदय में भगवान के चरणों के प्रति सच्चा प्रेम और श्रद्धा हो।
जो केवल बाहरी कर्मकांडों में विश्वास रखता हो।
वशिष्ठजी ने भगवान श्रीराम से क्या प्रार्थना की?
जन्म-जन्मांतर तक उनके चरणों के प्रति प्रेम बनाए रखने की।
उन्हें धन-दौलत प्रदान करने की।
उन्हें लंबी उम्र देने की।
जन्म-जन्मांतर तक उनके चरणों के प्रति प्रेम बनाए रखने की।
उन्हें स्वर्ग में स्थान दिलाने की।
लेख के अनुसार, सच्चा धर्म किसमें निहित है?
प्रेम और भक्ति में।
केवल बाहरी कर्मकांडों में।
ज्ञान और तपस्या में।
प्रेम और भक्ति में।
योग और दान में।
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