नई दिल्लीः राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बांड के ज़रिए चंदा दिए जाने पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इलेक्टोरल बांड व्यवस्था को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विस्तृत सुनवाई होगी. फिलहाल, सभी पार्टियां इस तरीके से मिले चंदे का पूरा ब्यौरा चुनाव आयोग को सीलबंद लिफाफे में सौंपें.

क्या है इलेक्टोरल बांड

2017 में केंद्र सरकार ने राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया को साफ-सुथरा बनाने के नाम पर चुनावी बांड का कानून बनाया. इसके तहत स्टेट बैंक के चुनिंदा ब्रांच से हर तिमाही के शुरुआती 10 दिनों में बांड खरीदने और उसे राजनीतिक पार्टी को बतौर चंदा देने का प्रावधान है. कहा गया कि इससे कैश में मिलने वाले चंदे में कमी आएगी. बैंक के पास बांड खरीदने वाले ग्राहक की पूरी जानकारी होगी. इससे पारदर्शिता बढ़ेगी.

क्या है याचिका

एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (ADR) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) ने इसे चुनौती देते हुए कहा कि इस व्यवस्था में पारदर्शिता नहीं है. बैंक से बांड किसने खरीदे, उसे किस पार्टी को दिया, इसे गोपनीय रखे जाने का प्रावधान है. यहां तक कि चुनाव आयोग को भी ये जानकारी नहीं दी जाती.

यानी सरकार से फायदा लेने वाली कोई कंपनी बांड के ज़रिए सत्ताधारी पार्टी को अगर चंदा दे तो किसी को पता ही नहीं चलेगा. इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा. इतना ही नहीं, विदेशी कंपनियों को भी बांड खरीदने की इजाज़त दी गई है. जबकि, पहले विदेशी कंपनी से चंदा लेने पर रोक थी.

ADR की तरफ से ये भी कहा गया कि अलग-अलग ऑडिट रिपोर्ट और इनकम टैक्स विभाग को पार्टियों की तरफ से दी गई जानकारी से ये पता चला है कि चुनावी बांड के ज़रिए लगभग 95 फीसदी चंदा बीजेपी को मिला है.

साफ है कि ये दरअसल सत्ताधारी पार्टी को फायदा पहुंचाने का जरिया बन कर रह गया है. लोकसभा चुनाव के दौरान ऐसा और भी ज़्यादा होने की आशंका है. इसलिए, कोर्ट तुरंत बांड के ज़रिए चंदे पर रोक लगाए.

कोर्ट का आदेश

3 जजों की बेंच की तरफ से अंतरिम आदेश पढ़ते हुए चीफ जस्टिस ने कहा- "ये एक जटिल मसला है. सरकार इस व्यवस्था को पहले से बेहतर और उचित बता रही है. याचिकाकर्ता का दावा अलग है. मामले में विस्तार से सुनवाई की ज़रूरत है. फिलहाल, दोनों बातों में संतुलन बनाने के लिए हम आदेश देते हैं कि सभी दल सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को चंदे की जानकारी दें."

कोर्ट ने साफ किया कि पार्टियों को 15 मई तक इलेक्टोरल बांड के ज़रिए मिले चंदे की जानकारी चुनाव आयोग के पास 30 मई तक जमा करवानी होगी. उन्हें दानदाता का नाम, एकाउंट नंबर, रकम जैसी सभी बातें बतानी होंगी. लेकिन अभी ये लिफाफे सील ही रहेंगे. चुनाव आयोग इन्हें नहीं देखेगा. कोर्ट विस्तृत सुनवाई में ये परखेगा कि क्या दानदाता की जानकारी गोपनीय रखने का प्रावधान सही है. इसके बाद ही ये तय होगा कि ये जानकारी चुनाव आयोग और बाकी लोगों को दी जा सकती है या नहीं.

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