लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी का साथ छोड़कर राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के एनडीए गठबंधन में आने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई पार्लियामेंट्री सीटों का गणित बदल सकता है. आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ऐसा चेहरा हैं, जो हिंदू और मुस्लिम दोनों समाज में स्वीकार्य हैं. ऐसे में उनका भारतीय जनता पार्ट (BJP) के साथ आना समाजवादी पार्टी के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है. उनके आने से नुकसान बसपा और सपा को होता दिख रहा है.


2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 27 सीटों में से बीजेपी ने 19 पर जीत हासिल की थी. बाकी की 8 सीटों पर सपा और बसपा को जीत मिली. 2019 में सपा और बसपा ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था, जिसका दोनों दलों को इन सीटों पर फायदा मिला और बीजेपी नहीं जीत सकी. 


RLD-BJP के साथ होने से किन सीटों पर बदल सकता है गणित


सहारनपुर
सहारनपुर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुस्लिम बहुल्य सीट है. यहां करीब 6 लाख मुस्लिम आबादी रहती है और 3 लाख अनुसूचित जाति, 3.5 लाख स्वर्ण और 1.5 लाख गुर्जर रहते हैं. 2019 में बहुजन समाज पार्टी के हाजी फजुर्लरहमान जीते थे, लेकिन इस बार सपा-बसपा का गठबंधन नहीं है. ऐसे में जयंत चौधरी-बीजेपी के गठबंधन से यहां समीकरण बदल सकते हैं.


नगीना
नगीना लोकसभा सीट पर किसी एक पार्टी का कब्जा नहीं रहा है. यहां अब तक तीन बार चुनाव हुए हैं और तीनों बार अलग पार्टी को जीत मिली. 2009 में नगीना लोकसभा सीट बनी और पहली बार चुनाव हुआ. इसमें सपा के यशवीर सिंह जीते. फिर, 2014 के चुनाव में बीजेपी के यशवंत सिंह को जीत मिली और 2019 में बसपा के गिरीश चंद्रा यहां से जीते. यहां सबसे ज्यादा आबादी मुसलमानों की है, लेकिन तीन चुनावों के नतीजें देखें तो तीनों बार हिंदू कैंडिडेट को जीत मिली. 


अमरोहा
वेस्टर्न यूपी की अमरोहा सीट पर जाट, दलित और सैनी वोटरों की संख्या ज्यादा हैं और मुस्लिमों की 20 फीसदी आबादी है. ऐसे में जयंत चौधरी यहां बीजेपी के लिए जाट और मुस्लिम वोटरों को साधने का काम कर सकते हैं. 2014 में यह सीट बीजेपी के पास थी, लेकिन 2019 के चुनाव में बसपा के कुंवर दानिश अली जीत गए. हालांकि, उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया है और बसपा ने डॉ. मुजाहिद हुसैन को अमरोहा से प्रत्याशी बनाया है. 


बिजनौर
पश्चिमी यूपी की एक और मुस्लिम बहुल लोकसभा सीट- बिजनौर, पर समीकरण बदल सकते हैं. यहां 1.35 लाख मुस्लिम वोटर हैं और 80 हजार दलित हैं. 2014 में बीजेपी ने यह सीट जीती थी, लेकिन 2019 में सपा-बसपा गठबंधन का जादू चला और सीट बसपा के मलूक नागर के पास चली गई. हालांकि, इस बार बीजेपी के साथ आरएलडी के आने से समीकरण बदलने की उम्मीद है. 


मुरादाबाद
नगीना की तरह मुरादाबाद सीट पर भी किसी एक पार्टी का कब्जा नहीं रहा. 1999 से 2019 तक अलग-अलग पार्टी के उम्मीदवारों को जीत मिली. 1999 में जगदंबिका पाल ने अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस नाम से पार्टी बनाई और चुनाव जीत गईं. 2004 में सपा का कब्जा हुआ, 2009 में कांग्रेस के टिकट पर पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन जीते और 2014 में यह सीट बीजेपी के पास चली गई. 2019 में सपा को यहां जीत हासिल हुई.


रामपुर
रामपुर सीट पर सपा का कब्जा रहा है. हालांकि, उपचुनाव में यह सीट बीजेपी के पास चली गई. 2019 में सपा के दिग्गज आजम खां ने यहां जीत दर्ज की, लेकिन हेट स्पीच मामले में तीन साल की सजा मिलने के बाद उन्हें यह सीट छोड़नी पड़ी. यहां मुसलमानों की 50.57 फीसदी और 45.97 फीसदी हिंदुओं की आबादी है. 2022 में हुए उपचुनाव में बीजेपी के राम सिंह लोधी जीते थे. इस सीट को आजम खां का गढ़ माना जाता है.


मैनपुरी
यूपी की मैनपुरी सीट सपा का अभेद्य दुर्ग है. मुलायम सिंह यादव यहां से चुनाव जीतते रहे, लेकिन उनके निधन के बाद यह सीट खाली हो गई. उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव चुनाव लड़ीं और जीत गईं. यहां की कुल साढ़े तीन लाख आबादी में से 1.5 लाख ठाकुर, 1.20 लाख ब्राह्मण और 1 लाख आबादी मुस्लिम और वैश्यों की है. सपा ने इस बार भी डिंपल यादव को यहां से मैदान में उतारा है. आरएलडी-बीजेपी गठबंधन यहां भी असर डाल सकता है.


संभल
संभल की लोकसभा सीट पर 40 फीसदी हिंदू और 50 फीसदी मुस्लिम आबादी है. 1984 तक संभल लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ थी, लेकिन 2009 में सपा के टिकट पर चुनाव लड़कर शफीकुर्रहमान बर्क ने कब्जा कर लिया. फिर 2014 में बीजेपी को जीत मिली और 2019 के चुनाव में शफीकुर्रहमान ने फिर से बाजी मार ली. 2024 में बीजेपी और आरएलडी गठबंधन इस सीट का गणित बिगाड़ सकता है.


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