लक्ष्मण की मूर्छा दूर करने वाली हनुमान जी की संजीवनी बूटी के बारे में तो हर कोई जानता ही है, लेकिन आज मूर्छित नेताओं को मिलने वाली बजरंगबली की चुनावी संजीवनी के बारे में जानते हैं. चुनावी मौसम में ये संजीवनी बूटी हर राजनीतिक दल को चाहिए. अब वो बीजेपी हो कांग्रेस हो या फिर आम आदमी पार्टी. मूर्छित राजनीतिक दलों के लिए संजीवनी बूटी का अनुपात अलग हो सकता है, लेकिन जरूरत सबको है. जानते हैं संजीवनी बूटी वाला आशीर्वाद किसे और कैसे मिलता है.


आज देश में धूमधाम से हनुमान जयंती मनाई गई. श्री राम का नाम सुनते ही तिलमिला जाने वाली पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी देशवासियों को हनुमान जयंती की शुभकामनाएं दीं. तो दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने शोभा यात्रा निकालकर हनुमान जयंती मनाई. सीएम केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल ने  हनुमान मंदिर में दर्शन किए. गोरखपुर के हनुमान मंदिर में सीएम योगी आदित्यनाथ ने हनुमान जी की पूजा की तो राजस्थान में प्रधानमंत्री मोदी ने हनुमान भक्तों पर हुए अत्याचारों को लेकर कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा.


हनुमान जयंती पर नजर आईं नूपुर शर्मा
लंबे समय बाद आज पूर्व बीजेपी नेता नूपुर शर्मा भी नजर आईं. दिल्ली में हनुमान जयंती के मौके पर नूपुर शर्मा ने भंडारे का आयोजन किया. हनुमान भक्तों को प्रसाद बांटा. विवादित टिप्पणी के बाद मिली धमकियों के चलते नुपुर शर्मा ने सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूरी बना रखी थी.


सबसे बड़ा सवाल है कि क्या हर चुनाव में हनुमान जी की एंट्री अब कंपलसरी हो गई है ? क्या हनुमान जी के आशीर्वाद के बिना चुनाव में जीत संभव नहीं? ये सवाल इसलिए पूछे जा रहे हैं क्योंकि 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बजरंगबली की एंट्री से पूरा चुनाव ही बदल गया था. महाराष्ट्र में भी हनुमान जी को लेकर नवनीत राणा और उस समय के सीएम उद्धव ठाकरे के बीच खूब विवाद हुआ था. क्या चुनावों में हनुमान जी के स्ट्राइक रेट को देखते हुए ही लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण से पहले नेताओं ने हनुमान जाप शुरु किया है ?


हनुमान जंयती पर राजनीतिक होड़ की शुरूआत कैसे हुई?
सुबह सुबह पीएम मोदी ने देश को हनुमान जयंती की बधाई दी फिर वो राजस्थान के टोंक पहुंचे. चुनावी सभा के मंच पर हनुमान का जयकारा लगवा दिया और फिर राजस्थान में कर्नाटक का विवाद लोगों के सामने रखा. पीएम ने अपने भाषण में कर्नाटक की घटना का जिक्र किया, लेकिन अली और बजरंगबली की लड़ाई कोई नई नहीं है, उत्तर प्रदेश में बीजेपी अली-बजरंगबली वाला प्रयोग कर चुकी है, हिमाचल और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी अली और बजरंगबली को लेकर बीजेपी-कांग्रेस में जमकर तकरार हई.


कर्नाटक नतीजों के बाद 'जय बजरंगबली... तोड़ दी भ्रष्टाचार की नली' नारे का कांग्रेस ने खूब प्रचार प्रसार किया. दरअसल, कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में बजरंग दल को बैन करने का वादा किया था. इसके बाद बीजेपी ने इसे सीधे बजरंगबली से जोड़ दिया. बीजेपी नेताओं ने कहा, कांग्रेस बजरंगबली को टारगेट कर रही है. बीजेपी ने चुनाव में इसे कैंपेन बना दिया.


बीजेपी का अली वर्सेस बली वाला दांव कर्नाटक में चल नहीं सका. कांग्रेस को यहां 135 सीटों के साथ भारी बहुमत मिला और बीजेपी 66 सीटों पर सिमटकर रह गई. इसके बाद हिमाचल नगर निगम चुनाव में भी हनुमान इफेक्ट देखने को मिला. महाराष्ट्र में भी अली वर्सेस बली की लंबी लड़ाई चली. साल 2022 में हनुमान चालीसा पाठ को लेकर सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा को अरेस्ट कर लिया गया था.


क्या चुनाव प्रचार में धार्मिक प्रतीकों के इस्तेमाल की अनुमति देता है कानून?
भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता देता है. अब कोई मंदिर जाए या मस्जिद ये उसकी मर्जी है, लेकिन धार्मिक स्वतंत्रता और आस्था को राजनीतिक दलों ने चुनावी मु्द्दा बना दिया. कोई अली की बात करता है तो कोई बजरंगबली की. काएदे से तो बात बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की होनी चाहिए. वैसे भारत में कानून है कि चुनाव प्रचार में धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए, लेकिन पता नहीं क्यों और कैसे हर चुनाव में धर्म की पिच पर खूब बैटिंग होती है.


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