हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 रिजल्ट: हरियाणा विधानसभा चुनाव नतीजों के शुरुआती रुझानों में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी किंग मेकर की भूमिका में आती हुई दिखाई दे रही है. एक साल से भी कम समय में जेजेपी ने हरियाणा की राजनीति में अच्छी खासी पकड़ बना ली है और वह अपने पहले चुनाव में ही 6 से 10 सीटें जीतती हुई दिखाई दे रही है. अगर हरियाणा चुनाव में बीजेपी या कांग्रेस को बहुमत नहीं मिलता है तो जेजेपी निर्णायक भूमिका में आ सकती है.


असल में जननायक जनता पार्टी लंबे समय तक हरियाणा की मुख्य पार्टी रही इंडियन नेशनल लोकदल से ही निकलती है. जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला का संबंध हरियाणा के दिग्गज नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल के परिवार से है. जननायक जनता पार्टी पिछले साल उस वक्त अस्तित्व में आई जब पूर्व सांसद दुष्यंत चौटाला और उनके भाई दिग्विजय चौटाला को इनेलो से बाहर कर दिया गया. दुष्यंत चौटाला को इनेलो से बाहर निकाले जाने की बड़ी वजह चाचा अभय चौटाला से बिगड़े संबंध थे.


दुष्यंत चौटाला का उदय


30 साल की उम्र में दुष्यंत चौटाला हरियाणा की राजनीति का बड़ा चेहरा बन चुके हैं. 2013 में इंडियन नेशनल लोकदल के नेता ओम प्रकाश चौटाला और अजय चौटाला को जेबीटी घोटाले में 10 साल की सजा मिली थी. दोनों दिग्गज नेताओं के जेल में जाने के बाद पार्टी की कमान अभय चौटाला के हाथ में आ गई.


2014 में इनेलो ने अजय चौटाला के बड़े बेटे दुष्यंत चौटाला को हिसार लोकसभा चुनाव से मैदान में उतारा. अपने पिता की सीट पर दुष्यंत चौटाला हरियाणा की दिग्गज नेता कुलदीप बिश्नोई को हराकर 25 साल की उम्र में ही लोकसभा पहुंच गए.


इनेलो के कार्यकर्ताओं में अजय चौटाला की पकड़ काफी मजबूत थी और उन्हें पार्टी में भविष्य के सीएम के चेहरे के तौर पर भी देखा जाता था. वहीं उनके भाई अभय चौटाला की पार्टी कार्यकर्ताओं में ज्यादा अच्छी छवि नहीं थी. दुष्यंत चौटाला के सांसद बनने के बाद इनेलो के कार्यकर्ता अभय चौटाला की बजाए उनसे अधिक जुड़ाव रखने लगे और 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के एक धड़े ने उन्हें सीएम उम्मीदवार बनाने की भी मांग की. लेकिन अभय चौटाला को यह मंजूर नहीं था. उनकी अगुवाई में इनेलो ने 2014 का चुनाव लड़ा और पार्टी 13 सीटों के नुकसान के साथ सिर्फ 19 सीटें ही जीत पाई.


2014 के विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां सीट से हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि दुष्यंत चौटाला की मां नैना चौटाला डबवाली सीट से विधायक बनने में कामयाब हुई थी. 2014 विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद दुष्यंत चौटाला और उनके भाई दिग्विजय चौटाला ने पार्टी कार्यकर्ताओं में मजबूत पकड़ बनानी शुरू कर दी.



2018 तक आते आते दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला के बीच मतभेद काफी गहरे हो गए. 2018 में जींद में हुई एक रैली में दुष्यंत चौटाला के समर्थकों ने अभय चौटाला के खिलाफ नारेबाजी की. दुष्यंत समर्थकों की नारेबाजी का नतीजा ये रहा कि पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला ने दुष्यंत और दिग्विजय को पार्टी से बाहर कर दिया.


दुष्यंत चौटाला को पार्टी से बाहर निकाले जाने से अजय चौटाला काफी नाराज हुए. अजय चौटाला ने दुष्यंत चौटाला के साथ मिलकर जननायक जनता पार्टी बनाने का फैसला किया. दिसंबर 2018 में जननायक जनता पार्टी अस्तित्व में आई. जेजेपी के बनते ही इनेलो पूरी तरह से टूट गई. इनेलो के 11 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए, जबकि चार विधायकों ने जेजेपी में शामिल होने के लिए इस्तीफा दे दिया.


जींद उपचुनाव से हुई शुरुआत


हरियाणा की राजनीति में जेजेपी के सफर की शुरुआत इस साल शुरुआत में जींद उप चुनाव से हुई. इनेलो उम्मीदवार के निधन के बाद जींद सीट पर उपचुनाव हो रहा था. जेजेपी ने उप चुनाव के दिग्विजय चौटाला को उम्मीदवार बनाया, जबकि कांग्रेस ने दिग्गज नेता रणदीप सुरजेवाला को इस सीट से मैदान में उतारा. बीजेपी ने मिड्डा को टिकट दिया था.



जींद उपचुनाव में जेजेपी ने सबको हैरान करते हुए करीब 40 हजार वोट हासिल किए. हालांकि बीजेपी उम्मीदवार इस सीट पर 8 हजार वोट के अंतर से जीत दर्ज करने में कामयाब रहा. लेकिन जेजेपी के वोटों की संख्या कांग्रेस से दुगुनी थी, जबकि इनेलो उप चुनाव में 4 हजार वोट ही हासिल कर पाई.


लोकसभा चुनाव में 7 फीसदी वोट


जेजेपी ने आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया. लोकसभा चुनाव में जेजेपी ने 7 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जबकि 3 सीटों पर आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ रही थी. जेजेपी को लोकसभा चुनाव में कोई खास कामयाबी नहीं मिली. दुष्यंत चौटाला को हिसार लोकसभा सीट बचाने में कामयाब नहीं हो पाए. लेकिन जेजेपी को अपने पहले चुनाव में 7 फीसदी वोट मिला, जबकि इनेलो सिर्फ 2 फीसदी वोट पर ही सिमट गई.


बीएसपी से टूटा गठबंधन


विधानसभा चुनाव के लिए जेजेपी ने बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया था. लेकिन दोनों पार्टियों का गठबंधन टिकटों के बंटवारें से पहले ही टूट गया. जेजेपी ने इसके बाद अकेले ही चुनाव मैदान में जाने का फैसला किया. जेजेपी ने राज्य की 80 से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. जेजेपी ने विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और बीजेपी के बागी उम्मीदवारों पर भी दांव लगाया है.


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