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दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर ईसीआई के विचार मांगे थे जिसमें तर्क दिया गया था कि धर्म से संबंधित नाम और प्रतीकों का उपयोग जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) का उल्लंघन है.
ईसीआई ने कहा कि उसके पास किसी पार्टी को डी-रजिस्टर करने की शक्ति नहीं है और इस संबंध में फैसला सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दिया है. दरअसल शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष सैयद वसीम रिजवी, जो हाल ही में जीतेंद्र त्यागी में बन हुए हैं, उनके द्वारा दायर याचिका पर SC सुनवाई कर रहा था. जीतेंद्र त्यागी ने याचिका में यह लिखा है कि ऐसी पार्टियों को इलेक्शन लड़ने से रोका जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में रिजवी का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया कर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि आयोग ने वर्ष 2005 में एक नीतिगत निर्णय लिया था जिसके तहत यह निर्णय लिया गया था कि धार्मिक नाम या अर्थ रखने वाले राजनीतिक दलों को आरपी अधिनियम की धारा 29 ए के तहत पंजीकृत नहीं किया जाएगा. तब से, ऐसे नामों वाले किसी भी राजनीतिक दल को पंजीकृत नहीं किया जा रहा है. तत्काल याचिकाओं में उल्लिखित कुछ राजनीतिक दलों जैसे इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन इस निर्णय के पहले ही पंजीकृत कर लिया था.
मई 2014 में भी चुनाव आयोग ने आदेश जारी किया था जिसमें यह तय किया गया था की जो पार्टी किसी धार्मिक नामों या प्रतीकों का इस्तेमाल करती है उसको पंजीकृत नहीं किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस याचिका में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन को नोटिस जारी कर दिया है.