नई दिल्ली: देश लोकतंत्र के सबसे बड़े त्योहार 'चुनाव' की तैयारी कर रहा है. राजनीतिक पार्टियां, दिग्गज नेता, पार्टी कार्यकर्ता और आम आदमी तक के जेहन में चुनाव को लेकर घमासान चल रहा है. सत्ताधारी पार्टी के सामने कुर्सी बचाने की चुनौती है तो वहीं विपक्ष अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है. इस सब के बीच चुनाव के इस त्योहार में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले चुनाव आयोग ने भी तैयारियां शुरू कर दी हैं. अभी तारीखों का एलान भले ही ना हुआ हो लेकिन ईवीएम से लेकर सुरक्षा व्यवस्था को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं.
भारत में चुनाव की प्रक्रिया जितनी सरल है उतनी ही रोचक भी है. चुनाव आयोग कम से कम संसाधन में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव संपन्न करवाता है. आजादी के बाद 1952 में पहले चुनाव से लेकर 2014 के चुनाव तक जनता ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. चुनावों आयोग को संसाधन जुटाने के लिए खर्च भी करना पड़ता है. चुनाव दर चुनाव आबादी बढ़ने से चुनावों पर खर्चा भी बढ़ता गया.
आपको जानकर हैरानी होगी कि आजादी के बाद 1952 में हुए पहले चुनाव में महज 10 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. वहीं 2014 में चुनावों ये खर्चा हर चुनाव में बढ़ते हुए 3800 करोड़ तक पहुंच गया. पहले चुनाव से जुड़ा एक रोचक तथ्य ये है कि गोदरेज कम्पनी ने 17 लाख बैलेट बॉक्स बनाए थे. इसके लिए सरकार ने 85 लाख रुपये का पेमेंट किया था, यानी एक बॉक्स के बदले पांच रुपए.
पहले चुनाव से लेकर 2014 के चुनाव का खर्चा
2004 के आंकड़ों में उन राज्यों के चुनाव का खर्च भी शामिल है जिनमें आम चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव भी हुए थे.