उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की मैनपुरी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे साफ हो गए हैं. इस सीट पर सपा की डिंपल यादव को 6,18,120 वोट मिले हैं वहीं बीजेपी के रघुराज शाक्य को 3,29,659 वोट हासिल हुए हैं. डिंपल यादव ने इस सीट से 2 लाख 88 हजार 461 वोटों से जीत हासिल की है. डिंपल यादव लगातार मतगणना के दौरान इस सीट पर बढ़त बनाई हुई थी और अब आखिरकार नतीजे पूरी तरीके से सामने आ गए हैं और इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने कब्जा कर लिया है. इस जीत के साथ ही यूपी की राजनीति में बदलाव भी दिखना शुरू हो गया है. शिवपाल ने अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का सपा में विलय कर दिया है. 


इस सीट पर बीजेपी ने सपा को तगड़ी टक्कर दी है. लेकिन अब साफ है कि मुकाबला सपा के पक्ष में एकतरफा रहा है. सपा से जहां इस सीट पर डिंपल यादव ने परिवार की साख बचाने के लिए चुनाव लड़ा, तो वहीं बीजेपी ने अपने पुराने खिलाड़ी रघुराज सिंह शाक्य पर दांव चला था, लेकिन वो इस सीट से सांसद रहे मुलायम सिंह यादव की बहू डिंपल यादव को मात देने में नाकाम रहे.


मुलायम सिंह यादव के असली उत्तराधिकारी अखिलेश


मैनपुरी में समाजवादी पार्टी की जीत से साबित हो गया है कि अखिलेश यादव ही मुलायम सिंह की विरासत के असली हकदार हैं. अखिलेश ने इसी रणनीति के तहत ही किसी और को उतारने के बजाए पत्नी डिंपल यादव को इस सीट से प्रत्याशी उतारा था. मैनपुरी में मिली जीत से जहां अखिलेश को विरासत की जंग में कामयाबी मिली है वहीं परिवार के अंदर भी उनकी स्थिति मजूबत होगी. और शायद ही कोई सैफई परिवार में उनको चुनौती दे पाएगा.


यादव बेल्ट में समाजवादी पार्टी की मजबूत पकड़


मैनपुरी की सीट यूपी में यादव बेल्ट के अंदर आती है. इस सीट का असर आसपास की सीटों पर भी पड़ता है. फर्रुखाबाद, इटावा, कन्नौज, कानपुर देहात जैसी सीटों पर इसका असर होता है. ये सभी सीटें यादव बहुल इलाकों की हैं. मैनपुरी में डिंपल की जीत से साफ संदेश जाएगा कि यादवों की असली पार्टी सपा ही है और अखिलेश यादव उनके नेता हैं. इसके साथ ही बीजेपी इस बीच यादवों के बीच पैठ लगाने में लगी है उसके लिए मामला अब कठिन होता चला जाएगा.


ओबीसी राजनीति में बीजेपी का एकक्षत्र राज्य नहीं
मैनपुरी में जीत तलाश रही बीजेपी इस बात का संदेश देना चाहती थी कि वो ही ओबीसी जातियों की अब एकमात्र पार्टी है जिसमें अब यादव भी शामिल हैं. हालांकि मैनपुरी में डिंपल की जीत बता रही है कि बीजेपी को यादव वोटरों ने शायद ही वोट दिया है. अब इस जीत के साथ ही अखिलेश यादव को बाकी ओबीसी जातियों में पैठ बनाने की पुरजोर कोशिश करेंगे. साफ है कि बीजेपी की ओबीसी राजनीति को अब और कड़ी चुनौती मिलने वाली है.


बता दें कि मैनपुरी लोकसभा में पांच विधानसभाएं आती है. जिसमें मैनपुरी सदर, भोगांव, किशनी, करहल और जसबंतनगर विधानसभा सीट शामिल हैं. लेकिन मतगणना के दौरान इन सभी सीटों पर डिंपल यादव शुरुआत से ही आगे रही.


मैनपुरी लोकसभा सीट जिसे समाजवादी पार्टी का गढ़ कहा जाता है, इसमें आने वाली मैनपुर सदर विधानसभा सीट जो बीजेपी के पास है. यहां से बीजेपी सरकार में पर्यटन एंव संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह यहां से विधायक हैं.


लेकिन यहां से भी इस उपचुनाव में सपा को समर्थन मिला है. डिपंल यादव यहां से भी रघुराज सिंह शाक्य को पीछे छोड़ते हुए आगे रही. इसके अलावा भौगांव विधानसभा सीट भी बीजेपी के पास है, यहां से बीजेपी के रामनरेश अग्निहोत्री विधायक है. लेकिन इस उपचुनाव में डिंपल यादव को अच्छा समर्थन मिला.


मैनपुरी सीट पर सपा का कब्जा


मैनपुरी लोकसभा में किशनी विधानसभा सीट पर सपा का कब्जा है, जहां से बृजेश कठेरिया विधायक है. करहल विधानसभा जहां से अखिलेश यादव विधायक हैं और जसवंतनगर विधानसभा सीट से अखिलेश के चाचा शिवपाल पाल यादव विधायक हैं. इस सभी जगहों से मतगणना के दौरान सपा आगे रही.


जसवंतनगर विधानसभा सीट से डिंपल यादव को काफी वोट मिले हैं, जो शिवपाल यादव का गढ़ माना जाता है. शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच चाचा भतीजे की तकरार किसी से छिपी नहीं थी. मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद दोनों चाचा-भतीजे साथ आ गए.


चाचा शिवपाल ने दिया था समर्थन 


लेकिन उपचुनाव के लिए इस सीट से सपा ने जब डिंपल यादव को प्रत्याशी घोषित किया था, तब नामांकन के दौरान शिवपाल यादव नदारद दिखे.  जिससे ये अंदाजा लगाया जा रहा था कि शायद फिर से अखिलेश और शिवपाल यादव के बीच फिर से रिश्ते खराब हो गए हैं, लेकिन मतदान से पहले अखिलेश यादव पत्नी डिंपल यादव के साथ चाचा शिवपाल के घर उनसे आर्शीवाद लेने पहुंच गए थे. जिसके बाद चाचा शिवापाल यादव ने भी पुराने सभी गिले शिकवो को भुलाकर डिंपल यादव को समर्थन देने का ऐलान किया था. 


यही कारण रहा कि डिंपल यादव को शिवपाल के गढ़ जसवंतनगर से भारी समर्थन मिला है और इसी सीट से मिले समर्थन के चलते ही मैनपुरी लोकसभा सीट को जितना उनके लिए आसान रहा है, क्योंकि कहा जाता है कि इस सीट पर जिस पार्टी को समर्थन मिलता है वहीं अपनी जीत सुनिश्चित कर पाती है. 


डिंपल यादव ने इस सीट को जीतकर सपा परिवार की साख को तो बचाया ही है. वहीं उन्होंने ये साबित कर दिया है कि मैनपुरी लोकसभा सीट सपा का अजेय दुर्ग है जहां से उसे कोई नहीं हिला सकता. साल 1996 में इस सीट से पहली बार सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने चुनाव लड़ा था और तब से इस सीट पर सपा का ही कब्जा रहा है. ऐसे में उनके निधन के बाद सपा के ऊपर मुलायम सिंह यादव की विरासत को बचाने की चुनौती थी. जिसे उन्होंने जीत लिया है. इस जीत से ये साबित हुआ है कि अखिलेश यादव ही सपा के उत्तराधिकारी है.  


पार्टी का वोट बैंक वापस लौटेगा


मैनपुरी लोकसभा सीट पर डिंपल यादव की जीत से जहां मुलायम सिंह यादव को विरासत को संभालने में सपा को मजबूती मिली है. तो वहीं यादव परिवार की एकता का संदेश लोगों के बीच गया. जिसके बाद सपा का जो यादव वोट बिखर गया था, या कहें कि कन्फयूज था वो अब वापस उनके समर्थन नें खड़ा होगा.


मैनपुरी के आस-पास वाले इलाके जहां पार्टी कमजोर है वहां मजबूती मिलेगी. जिसमें बदांयू, इटावा और फर्रुखाबाद जैसे इलाकों में अखिलेश यादव को लेकर लोगों में विश्वास बढ़ेगा.


इसके साथ ही सपा को इस जीत से साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर भी अच्छे संकेत मिल सकते हैं. यूपी की सभी 80 लोकसभा सीटों पर जीत का ख्वाब सजा रही थी बीजेपी के लिए सपा का गढ़ जीतना मुश्किल हो सकता है.