राजस्थान के भरतपुर के अटल बांध इलाके की गलियों में एक छोटी-सी दुकान है, जहां कभी गोविंद कुमार अपने हाथों से गरमा-गरम पकौड़े और नमकीन तलते थे. उन पकौड़ों की खुशबू सिर्फ भूख नहीं मिटाती थी, बल्कि एक सपना भी संजोए रखती थी अपनी बेटी को कुछ बड़ा बनते देखने का सपना.

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गोविंद कुमार ने पिछले 25 सालों तक धूप, धूल और सर्दी की परवाह किए बिना उसी दुकान पर मेहनत की. 7 लोगों के परिवार को चलाने के लिए उन्होंने हर दिन संघर्ष किया. उनके पास बहुत कुछ नहीं था, लेकिन एक अमूल्य पूंजी थी अपनी बेटियों की शिक्षा पर अटूट विश्वास. और अब वही विश्वास उनकी बड़ी बेटी दीपेश कुमारी को IAS अधिकारी बनाकर उनका सिर गर्व से ऊंचा कर गया.

छोटे से कमरे में बड़े सपने

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दीपेश का बचपन एक छोटे से कमरे में बीता. पांच भाई-बहनों के साथ वही उनका खेल का मैदान था और वही पढ़ाई की जगह भी. कभी बिजली जाती, तो दीपेश दीये की रोशनी में पढ़ाई करतीं. मुश्किलें बहुत थीं, लेकिन उन्होंने कभी हालात को बहाना नहीं बनाया.

हौसला करोड़ों का

गोविंद कुमार का जीवन किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं. सुबह से रात तक दुकान चलाने के बाद भी वे बच्चों की पढ़ाई के लिए हर संभव व्यवस्था करते थे. कई बार ऐसा भी हुआ जब उन्होंने खुद भूखे रहकर स्कूल की फीस भरी. वह हमेशा कहते हम गरीब जरूर हैं, लेकिन तुम्हारे सपने कभी छोटे नहीं होने चाहिए.

शिशु आदर्श से IIT बॉम्बे तक का सफर

दीपेश ने भरतपुर के शिशु आदर्श विद्या मंदिर से अपनी शुरुआती पढ़ाई की. 10वीं में 98% और 12वीं में 89% अंक लाकर उन्होंने परिवार को गर्व से भर दिया. इसके बाद उन्होंने एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज, जोधपुर से सिविल इंजीनियरिंग में बी.टेक किया. उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक IIT बॉम्बे तक पहुंचा दिया, जहां से उन्होंने एम.टेक की डिग्री हासिल की.

नौकरी छोड़ी, सपनों का पीछा किया

IIT से पढ़ाई पूरी करने के बाद दीपेश ने एक निजी कंपनी में नौकरी की. लेकिन उनका दिल हमेशा एक ही दिशा में था- UPSC परीक्षा. उन्होंने एक साल बाद नौकरी छोड़ दी और दिल्ली में किराए के कमरे में बैठकर तैयारी शुरू कर दी. पैसे बचाने के लिए उन्होंने अपने खाने और खर्चों में कटौती की.

पहली बार असफलता, लेकिन हार नहीं मानी

साल 2020 में दीपेश ने पहली बार UPSC परीक्षा दी, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. उस वक्त उनके मन में निराशा थी, लेकिन उन्होंने खुद से वादा किया कि अब पीछे नहीं हटेंगी. उन्होंने और अधिक मेहनत की अपनी गलतियों को समझा और नए जोश के साथ तैयारी में जुट गईं.

दूसरी कोशिश में बनीं IAS अधिकारी

साल 2021 में किस्मत और मेहनत दोनों ने साथ दिया. दीपेश ने ऑल इंडिया 93वीं रैंक हासिल की. इतना ही नहीं, उन्होंने EWS कैटेगरी में चौथा स्थान पाया यानी टॉप रैंकर्स में शामिल रहीं. यह भी पढ़ें: भैंस चराने वाली लड़की से IAS अफसर तक, मुश्किलों को मात देकर सी वनमती ने क्रैक किया UPSC


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