भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद अब स्कूलों के साइंस सिलेबस का हिस्सा बनेगी. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने केंद्र सरकार के निर्देश पर कक्षा 6 से 8 तक की विज्ञान की किताबों में आयुर्वेद से जुड़े अध्याय शामिल किए हैं. इन नए अध्यायों में विद्यार्थियों को दिनचर्या ऋतुचर्या भोजन और स्वास्थ्य के आयुर्वेदिक सिद्धांतों की जानकारी दी जाएगी. इसका मकसद है कि बच्चे आधुनिक विज्ञान के साथ-साथ भारत की पारंपरिक वैज्ञानिक सोच को भी समझ सकें.

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एनसीईआरटी ने दी यह जानकारी

एनसीईआरटी के निदेशक प्रोफेसर दिनेश प्रसाद सकलानी ने बताया कि इन बदलावों का उद्देश्य समग्र या होलिस्टिक शिक्षा को बढ़ावा देना है. उन्होंने कहा कि आयुर्वेद केवल इलाज की पद्धति नहीं, बल्कि एक लाइफस्टाइल है, जो शरीर, मन और पर्यावरण के बीच संतुलन पर जोर देती है. क्लास 8 की नई साइंस किताब ‘Curiosity’ के तीसरे अध्याय में छात्रों को बताया गया है कि सही दिनचर्या, पौष्टिक आहार, नियमित व्यायाम और मानसिक शांति कैसे स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी हैं.

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सिलेबस में शामिल किए गए ये पाठ

जानकारी के मुताबिक, क्लास 6 की किताब में 'अष्टांग हृदय सूत्र स्थान' जैसे ग्रंथों से प्रेरित सिद्धांतों को शामिल किया गया है. इसमें पदार्थों के वर्गीकरण और बीस विरोधी गुणों (गुणों के सिद्धांत) का उल्लेख है, जिससे छात्रों में प्रकृति और शरीर के बीच संबंध की समझ विकसित हो सके.

हायर एजुकेशन के लिए भी प्लान

इसके अलावा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) भी उच्च शिक्षा के लिए आयुर्वेद आधारित पाठ्यक्रम तैयार कर रहा है. केंद्रीय आयुष मंत्री प्रतापराव जाधव ने बताया कि एनसीईआरटी और यूजीसी मिलकर स्कूल से लेकर यूनिवर्सिटी स्तर तक के लिए एकीकृत कोर्स तैयार कर रहे हैं, ताकि छात्र आयुर्वेद को वैज्ञानिक दृष्टि से समझ सकें.

क्या है सरकार की योजना?

आयुष मंत्री प्रतापराव जाधव ने कहा कि शिक्षकों के लिए भी विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जा रहे हैं, जिनमें वर्कशॉप, हैंडबुक और ओरिएंटेशन सत्र शामिल होंगे. उन्होंने बताया कि गोवा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में पहले ही भारतीय ज्ञान प्रणाली को शिक्षा से जोड़ा जा चुका है. गौरतलब है कि नई शिक्षा नीति 2020 में भी भारत की परंपरागत ज्ञान प्रणालियों को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर जोर दिया गया था. अब आयुर्वेद को साइंस शिक्षा का हिस्सा बनाकर उसी दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है. इससे बच्चों को न सिर्फ वैज्ञानिक सोच विकसित करने में मदद मिलेगी, बल्कि वे भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और चिकित्सा विरासत को भी समझ सकेंगे.

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